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विचारपोथी
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३०३ जो कर्म बहुलायास है, वह सात्त्विक कर्म नहीं है। और स्वकर्म तो कतई नहीं है।
स्वधर्म या अपनी मर्यादा छोड़कर सेवाका लोभ करनेमें, और जो हानि होगी सो होगी ही; परन्तु जिस सेवाका लोभ किया, वह सेवा ही ठीक नहीं हो पाती, यह आपत्ति है।
३०५ बुद्धिका सदुपयोग–सत्त्वगुण ।
बुद्धिका दुरुपयोग-रजोगुण । . बुद्धिका अनुपयोग-तमोगुण ।
३०६
गंगा अपने नियत मार्गसे बहती है, इस कारण उसका लोगोंको ज्यादा-से-ज्यादा उपयोग होता है। परन्तु अधिक उपयोगी होनेके लोभसे यदि वह अपना नियत मार्ग छोड़कर लोगोंके प्रांगनमेंसे बहने लगे, तो लोगोंकी क्या दशा होगी !
३०७ समुद्रकी लहरोंका अखंड आन्दोलन चलता रहता है ; और साथ ही अखंड जप-ॐ ! ॐ ! ॐ !
'मामनुस्मर युद्धय च ।'
३०८
'यह सामनेवाला दीपक है यह जितना निश्चित है, उतना ईश्वर है, यह क्या तुम निश्चितरूप से मानते हो ?'
ईश्वर है, यह मैं निश्चितरूपसे मानता हूं। सामनेवाला दीपक है ही, यह मैं दावेके साथ नहीं कह सकता।
३०६ .. शकुंतलाके चरित्रमें शिक्षण और पूर्व-संस्कार का झगड़ा दिखाया गया है।
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