Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 47
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी २६५ हम वैदिक ऋषियोंका आधार लेते हैं। वैदिक ऋषि उनसे पूर्वके ऋषियोंका आधार लेते हैं। इसपरसे "ज्ञान अनादि है" इतना ही निष्कर्ष समझना है। २६६ रावण-रजोगुण कुंभकर्ण-तमोगुण विभीषण-सत्त्वगुण परमार्थ यदि कठिन कहें, तो हम डरसे घर ही नहीं छोड़ते। अगर आसान कहें, तो बाज़ार में खरीदने के लिए दौड़ते हैं। २६८ किसी-न-किसी नित्य-यज्ञके बिना राष्ट्र खड़ा नहीं रह सकेगा। २६६ दुःख सहना तितिक्षाका प्रारम्भ है। तितिक्षाको कसौटी सुख सहन करने में है। - ३०० मराठी साहित्यका जन्म भी ॐकारसे ही हुआ है । ॐकारकी साढ़ेतीन मात्राोंको लक्ष्य करके ज्ञानदेवकी साढेतीन चरणोंकी अओंवी (एक मराठी छंद) का निर्माण हुअा है। ३०१ आईना देखनेके लिए आईना, यह एक प्रकार; और मुह देखनेके लिए आईना, यह दूसरा । प्रकार। उसी तरह वेदज्ञानके लिए वेदाध्ययन, यह एक प्रकार, और आत्मज्ञानके लिए वेदाध्ययन यह दूसरा प्रकार । इस दूसरे प्रकार को स्वाध्याय कहते हैं । मननकी कमी अधिक श्रवणसे पूरी नहीं होगी। For Private and Personal Use Only

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