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विचारपोथी
२८० ध्यानके लिए प्रासन । विचारके लिए चलन।
२८१ वैदिक ऋषियोंको आत्मस्तुतिमें संकोच नहीं होता। आत्मरूप हुए ऋषि यदि आत्मस्तुति न करेंगे तो क्या अनात्मस्तुति करेंगे!
२८२
संत तुकारामपर आरोप किया जाता है कि उन्हें गाली देनेकी बुरी लत थी। आरोप सच है। परन्तु मुझे उसमें संत तुकारामकी अहिंसाकी पराकाष्ठा दीख पड़ती है।
२८३ . कर्तव्य और आनन्दका एकरूप होना अद्वैतकी एक व्याख्या है। परन्तु जबतक यह सिद्ध नहीं होता, तबतक कर्तव्यसे चिपटे रहनेमें कल्याण है।
२८४ समग्र साहित्यके अभ्याससे अथवा संपूर्ण विश्वके विज्ञानसे. जो संतोष नहीं मिल सकता, वह आत्म-संशोधनसे मिलता हैं।
सद्भावसे साधनाका स्वांग ही किया जावे, तो भी हर्ज नहीं।
'कल्हाड़ीका डंडा कुलका बैरी" वाले न्यायके अनुसार मनुष्य-शरीरकी सहायतासे सारी देहें काट डालनी हैं।
२८७ रातका अंधेरा चिन्तनके लिए अनुकूल है। उसका उद्देश्य ही वह है। सोनेसे पहले थोड़ा समय चिन्तन करना उपयोगी है। चिन्तनमें दिनभरके आचरणका परीक्षण, जो दोष हुए हों उन्हें
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