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विचारपोथी
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२. कल्पनाका कर्तृत्व । ३. साधनाका अपूरणत्व।
२७२ यदि व्यष्टिका नीतिशास्त्र समष्टिके लिए लागू न होता हो, तो अद्वैत सिद्धान्त मिथ्या मानना पड़ेगा।
२७३
(१) शब्दानन्द (२) कल्पनानन्द (३) अनुभवानन्द (४) श्रद्धानन्द ।
२७४ पानीसे रक्त गाढ़ा भले ही हो; पर पानीकी पवित्रता पानो हो में है।
२७५ ___ मुझमें जो गुण हैं, वे मुझमें हैं, इसलिए दूसरेमें भी हों, ऐसी इच्छा होती है। मुझमें जो गुण नहीं हैं, वे मुझमें नहीं इसलिए दूसरेमें हों, ऐसी इच्छा होती है।
२७६
गुरुकी खोज करनेकी जरूरत नहीं है; क्योंकि गुरु स्वयं ही शिष्यकी खोज कर रहे हैं। शिष्यकी योग्यता प्राप्त करना-भर अपना काम है। अथवा यों भी कहा जा सकता है कि इसीका नाम गुरुकी खोज करना है।
२७७
ज्ञानदेव योगी अवश्य थे, परन्तु उनके योगका भक्तिको 'साष्टांग' प्रणाम है।
भगवान्में विश्वास. याने दुनिया में विश्वास, याने आत्मामें विश्वास, याने सत्यमें विश्वास ।
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२७६
सभी प्रवृत्तियोंका फल शून्य है ; क्योंकि, आदिमें जैसे थे वैसे अन्तमें होना; इतनी ही सारी निष्पत्ति है।
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