________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
४०
www.kobatirth.org
विचारपोथी
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२४८
- से ज्ञ तक सभी अक्षर ब्रह्मके प्रतीक हैं । परन्तु 'प्र' और 'ज्ञ' विभूतियां हैं। 'ब्रह्म-ज्ञ है' ऐसी उपासना करें । इस उपासनासे भक्त नम्र हो जायगा ।
१. अ-ज्ञ याने अनासक्त ज्ञान ।
२. प्रज्ञ याने वाङ् मय - मूर्ति ।
३. प्र-ज्ञ याने निर्गुण और सगुण दोनों 1
४. अ-ज्ञ याने प्रजान। यह तो अर्थ प्रसिद्ध ही है ।
२४६
अपरिग्रहकी केंची ज्ञानपर भी चलानी चाहिए। व्यर्थं ज्ञानके का परिग्रह करना ठीक नहीं है।
२५०
आत्मा शक्यता - मूर्ति है । श्रात्माके लिए अशक्य कुछ भी नहीं है।
२५१
'साइन्स' की कितनी भी सूक्ष्म दूरबीन क्यों न लें, तो भी आत्मा की आवाज सुननेके लिए वह निरुपयोगी है ।
२५२ पहला मंगल कौनसा ? - भगवान् विष्णुः । दूसरा मंगल ? - गरुड़ध्वजः । तीसरा मंगल ? - पुण्डरीकाक्षः । चौथा मंगल ? - विष्णुसहस्रनाम देखो।
२५३ तप और तापके बीचकी विभाजक रेखा जानना ज़रूरी है । २५४
अखंड ईश्वर-स्मरण याने अखंड कर्तव्य-जागृति ।
२५५
ईश्वरशरणता की मूर्ति फलत्याग ।
For Private and Personal Use Only