Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी २३६ कोई कहते हैं, "ईश्वर अज्ञेय है'। यदि अज्ञय है, तो है काहेपरसे ? यदि है, तो अज्ञेय कैसे ? २४० प्रकृतिके हेतुके अनुसार माताका लड़केपर और बापका लड़कीपर परिणाम होना चाहिए। आत्मा हमेशा अपवादक है ही। २४१ कर्म ज्ञानका जलावन है। ज्ञानाग्नि अखंड जलती रखनेके लिए उसमें कर्मरूपी जलावन निरंतर लगाते रहना चाहिए। २४२ हमारा शब्दप्रमाण याने ऋषियोंका प्रत्यक्ष । इसलिए शब्दप्रमाणको भी अनुभवकी कसौटीपर कसकर देखना उचित है। २४३ मत्य=धर्म=ब्रह्म। २४४ 'न तद् भासयते सूर्यो न शशांको न पावकः ।' सूर्य-प्रत्यक्ष (चक्षुः)। शशांक-अनुमान (मनः) पावक-शब्द (वाक्)। २४५ प्रात्मदर्शन जीवनका काव्य है। २४६ फल तुझे पहले ही मिल चुका है। अब कर्तव्य करना बाकी है। फिरसे फल कैसे मांगता है ? २४७ विश्व-प्रत्यक्ष-ब्रह्म। ईश्वर-अनुमान-ब्रह्म । वेद-शब्दब्रह्म । आत्मा-ब्रह्म । For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107