Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी एक माग-पुण्यसे पापनाश, अनासक्तिसे पुण्यनाश । दूसरा मार्ग-पापसे पुण्यनाश, अनुतापसे पापनाश। भक्त और शाक्त । काम-क्रोधको आपसमें लड़ाकर मारने में ज्ञानकी कुशलता ११२ क्रोध भगवानपर, क्रोध अपनेपर, क्रोध क्रोधपर । 'अन्तिम' ध्येय-वाद याने पुरुषार्थ-हीनता । 'अन्तिक' व्यवहार-वाद याने हीन पुरुषार्थ । ११४ एक कबीरपन्थी साधु बोला, 'मैं 'ओम्' नहीं जानता, 'सोम् (सोऽहम्) नहीं जानता और 'बोम्' नहीं जानता।" । ठीक है। तू प्रोम् नहीं जानता, फिर भी प्रोम् तुझे जानता है, _ 'अद्वैत' -भूमिकामें पर-परीक्षण भी आत्म-परीक्षण हो हो जाता है। क्योंकि, तब भैसेके पीठपर उठे हुए निशान भी हमारी पीठपर उठ आते हैं। - प्रार्थना कर्तव्य, सूत कातना कर्तव्य, और भोजन भी कर्तव्य । तीनों यज्ञार्थ समझकर ही करता हूं। परन्तु पहले दोनों कर्तव्य करने में जो निःसंकोच भाव होता है वह तीसरा कर्तव्य करने में नहीं होता। For Private and Personal Use Only

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