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विचारपोथी
१३० हिन्दुधर्म में समूचे समाज-के-समाज निवृत्त-मांस पाये जाते हैं। यह एक उस धर्मकी विशेषता मानी जा सकती है। पर इतनी सावधानी आवश्यक है कि वह भूत-दयाकी प्रेरक बने, भेद-बुद्धिकी पोषक न हो।
अस्तेयसे मैं जगत जीतता हूं । अपरिग्रहसे उसका त्याग करता है।
'अपने ही घर जो चोरी करता है, वह एक मूर्ख' यह रामदास स्वामीका एक वचन है। कोई भी चोर 'अपने ही घर' चोरी करता है, इसलिए वह एक मूर्ख' ।
सिंह हिंसक है, इसलिए उसे पीछे मुड़कर देखना पड़ता है। अहिंसकके लिए सिंहावलोकनका कोई प्रयोजन नहीं।
१३४ तेज और क्षमा एक-दूसरेकी व्याख्याएं हैं।
. १३५ यदि और जब दूसरे से सेवा लेने में मेरा कल्याण हो, तो और तब मेरी सेवा करने में दूसरेका भी कल्याण होगा ; और उसी प्रकार इसका उल्टा। ,
___ बचपनसे मुझे मुरली जितनी मधुर लगती है, उतना दूसरा कोई वाद्य नहीं लगता । मुरली हमारा राष्ट्रीय वाद्य है। गरीबसे अमीरतक सभीके लिए सुलभ है। रातके शान्त समय दूरसे मुरलोकी ध्वनि कानमें पड़ते ही भगवानके दिव्य चरित्रका स्मरण हो पाता है।
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