Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी १८७ स्वतन्त्रतादेवी का उपासक तोतेको पिंजरेमें बंद नहीं रख सकेगा। १८८ पूर्णिमाको कृष्णका मुखचन्द्र देखें । अमावस्याको कृष्णकी अंगकान्ति देखें। १८६ कोई कर्मयोग को पिपीलिका और ध्यानयोगको विहंगम कहते हैं। मैं कर्मयोगकी ईसपनीतिके कछुएसे और ध्यानयोगकी खरगोशसे उपमा देता हूं। ध्यान करते-करते कब नींद लग जाती है, यह ध्यानमें ही नहीं आता। १६० "क्यों रे ! तुझे नींद लगी है?" एक कहता है, “नहीं, अभी नहीं लगी।" दूसरा कहता है, "हां, कबकी लगी है।" ॐ कहिए या नेति कहिए, अर्थका 'नकार' ही है। १६१ दुनिया मेरी प्रत्यक्ष सेवा कर रही है, लेकिन मैं तो दुनियाकी सेवाका नाम ले रहा हूं। अजामिल पापीका नारायणके नामसे उद्धार हो गया । मालूम होता है, यह ईश्वरी संकेत है कि उसी तरह सेवाके नाम पर ही मेरा उद्धार हो जाय। नाम-महिम। अगाध है। १९२ अद्वैत-'वाद', याने अचूक द्वैतसिद्धि । १९३ स्वप्न नींदमें जागना है, और अनवधान है जागृतिमें सोना प्राय: ये एक दूसरेके कार्य-कारण होते हैं। For Private and Personal Use Only

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