Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 34
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org विचारपोथी . २०२ साधना कहांतक करें ? जब वह अपने आप 'होने' लगे तबतक । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०३ हिमालय उत्तर दिशामें क्यों है ? क्योंकि मैंने उसको उत्तरमें रहने दिया है । मैं कल उसकी उत्तर में बैठूं तो वह फौरन दक्षिणमें फेंका जायगा । 1 २०४ साधकको स्वप्नपर भी चौकी देनी चाहिए। आत्मसंशोधनके लिए उसकी बहुत ज़रूरत है । हरिश्चन्द्रका उदाहरण । २०५ अनाहार, अल्पाहार, सहजाहार । ३३ २०६ 'दुःखमित्मेव' त्याग उचित नहीं है । 'दुःखमिति' त्याग उचित हो सकता है । २०७ सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं 'व्रज' । भगवानने परिव्राजककी यह परिभाषा की है। देह शव आत्मा— शिव जीवन - श्मशान २०८ कोई कहते हैं, 'मनुष्य याने साधनवान् प्रारणी ।' मैं कहता हूं, 'मनुष्य याने साधनावान् प्राणी ।' २०६ सृष्टि याने एक अन्योक्ति है। देखने में सृष्टि और वास्तवमें भगवान् । २१० For Private and Personal Use Only

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