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विचारपोथी .
२०२
साधना कहांतक करें ? जब वह अपने आप 'होने' लगे
तबतक ।
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२०३
हिमालय उत्तर दिशामें क्यों है ? क्योंकि मैंने उसको उत्तरमें रहने दिया है । मैं कल उसकी उत्तर में बैठूं तो वह फौरन दक्षिणमें फेंका जायगा ।
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साधकको स्वप्नपर भी चौकी देनी चाहिए। आत्मसंशोधनके लिए उसकी बहुत ज़रूरत है । हरिश्चन्द्रका उदाहरण । २०५
अनाहार, अल्पाहार, सहजाहार ।
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'दुःखमित्मेव' त्याग उचित नहीं है । 'दुःखमिति' त्याग उचित हो सकता है ।
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सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं 'व्रज' । भगवानने परिव्राजककी यह परिभाषा की है।
देह शव आत्मा— शिव जीवन - श्मशान
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कोई कहते हैं, 'मनुष्य याने साधनवान् प्रारणी ।' मैं कहता हूं, 'मनुष्य याने साधनावान् प्राणी ।'
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सृष्टि याने एक अन्योक्ति है। देखने में सृष्टि और वास्तवमें
भगवान् ।
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