Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी १६ वियोग पचा सका। अर्जुन कृष्णके जीते-जी उसका वियोग सह लेता, परन्तु उसके मरनेपर वह छटपटाने लगा। ध्यानसे कर्मफल-त्याग श्रेष्ठ कहा है; क्योंकि व्यानमें भी सूक्ष्म स्वार्थ हो सकता है। स्थूल विकार पक्की चट्टान है । वह भक्तिके झरनेको फूटने ही नहीं देता। स्थूल विचार जीत लेनेपर भक्तिका उद्गम होता है। लेकिन भक्तिका उद्गम होनेपर भी सूक्ष्म विकार शेष रहते ही हैं। कच्ची चट्टानमेंसे झरना बहता रहता है। इसलिए आवाज़ होती है। वही तड़पन है। जहां सूक्ष्म विकार भी नष्ट हुए, यह तड़पन गई । यही पराभक्ति है। १८ "उसका मैं' इस अनुभवमें अहंकार नहीं है, लेकिन परोक्षता है। 'मेरा मैं' इस अनुभवमें परोक्षता नहीं है, किन्तु अहंकार है। भतमात्रमें भगवान् दिखाई देने लगेगा, तब सन्त सेवाके लिए क्यों तरसते हैं, इसका रहस्य समझमें पायगा। ज्ञानदेवमें गुरु-भक्तिका उत्तम विकास हुआ । इसलिए उन्हें सृष्टि गुरु-रूप दिखाई देने लगी। उसमेंसे उनको दृष्टांत मिले । ज्ञानदेवकी मानी गई काव्य-स्फूर्ति उनकी गुरुभक्ति का स्वाभाविक परिणाम है। जब 'इन्द्राय तक्षकाय स्वाहा' के न्यायका व्यवहार किया जाता है, तब इंद्र तो मरनेवाला होता ही नहीं; किन्त तक्षक अलबत्ता अमर हो जाता है। For Private and Personal Use Only

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