Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी १३ सत्ताका अभिमान, संपत्तिका अभिमान, बलका अभिमान, रूपका अभिमान, कुलका अभिमान, विद्वत्ताका अभिमान, अनुभवका अभिमान, कर्तृत्वका अभिमान, चारित्र्यका अभिमान, ये अभिमानके नौ प्रकार हैं । पर 'मुझे अभिमान नहीं है' ऐसा भास होना इसके जैसा भयानक अभिमान दूसरा नहीं है। १४ मैं कामहत हूं। मुझे पूर्णकाम कर, निष्काम कर, या आत्मकाम कर। यदि पूर्णकाम करेगा तो तेरे चरणोंपर अपना प्राण चढ़ाऊंगा; निष्काम करेगा तो बुद्धि चढ़ाऊंगा; आत्मकाम करेगा तो वह काम ही चढ़ाऊंगा। भजन (धुन) 'ज्ञानदेव कृष्ण । गीता कृष्ण'। इसकी तर्ज़ 'गोपालकृष्ण । राधाकृष्ण,'इस भजनकी-सी हो। भजन करते समय नीचे लिखी 'ओवी' (एक मराठी छन्द) के अर्थका मनन होः "तेथ भजता भजन भजावें । हे भक्ति-साधन में आघवें तें मी चि जालों अनुभवें । अखंडित ॥" (भजता-भजन करनेवाला (कर्ता), भजन (कर्म) और भजावें भजन करना (क्रिया)। आघवें=संपूर्ण, निःशेष । जालों = हुआ हूं।) मेरी एकादशीः (१) अहिंसादि व्रत (६) गोरक्षण (२) ईशप्रार्थना (७) उषोपासना (३) गीतार्थचिन्तन (८) मौनाभ्यास (४) नित्ययज्ञ (६) मातृस्मरण (५) सेवाधर्म (१०) भारतनिष्ठा (११) आकाशसेवन For Private and Personal Use Only

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