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विचारपोथी
६२
हिरण्यकशिपुकी आज्ञा प्रह्लादने नहीं मानी, इसमें विशेषता नहीं है। व्यासका त्याग शुकको करना पड़ा, इसमें विशेषता है।
स्वदेशी भूतदयाका शास्त्र है । स्वदेशीके माने ममता नहीं।
६४ बुद्धि और भावनाका जहां मेल नहीं दिखाई देता, वहां इन्द्रिय-निग्रहका का अभाव होता है ।
पराभक्ति याने समता, याने आत्मज्ञान, याने निर्विकारता।
सगुण निर्गुण एक ही है । जो वस्तु एक अर्थमें सगुण, वही दूसरे अर्थमें निर्गुण हो सकती है। वैसे ही इसका विपरीत। उदाहरणार्थ, लोकसेवा सगुण और आत्माद्धार निर्गुण है, यह भी सच है और इसका विपरीत भी सच है।
सूर्य-ग्रहणमें यदि दुःखका कारण नहीं है, क्योंकि उसमें पृथ्वी और सूर्यके बीचमें चन्द्रके आनेसे अधिक और कुछ भी नहीं होता, तो मनुष्यको पानीमें डूबते समय चिल्लानेका भी कोई कारण नहीं है; क्योंकि वहां मनुष्य का नाक और बाहरकी हवाके बीचमें पानी आनेके अलावा और कुछ भी नहीं होता।
सगुण उपासनामें नम्रता है । निर्गुण उपासनामें ज्ञानकी जिम्मेवारी है, और इसीलिए "क्लेश अधिक" ।
अपनी अन्नवस्त्रादि प्राथमिक आवश्यकताओंका भार दूसरे
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