Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी भगवान् ने हमारी आंखोंका रंग भी आकाश के समान नीला बनाया है। नीलकान्तका दर्शन ही उसका उद्देश्य रहा होगा। ४६ कमल याने अलिप्त पवित्रता। ५० भक्त नम्र होता है। उसको भगवानके चरणोंका दर्शन पर्याप्त जान पड़ता है। दिनभर काम करनेवालेके लिए रातकी नींद जितनी आवश्यक और आनन्दकारक है उतनी ही जीवनभर मेहनत करनेवालेके लिए अन्तिम महानिद्रा आवश्यक और आनन्दकारक है। मृत्यु भगवानका सौम्यतम रूप है। संस्कृत में 'हन्' याने मारना और 'हन्' याने गुणना है। हिंसासे पापका गुणाकार होता है। शेवाळी पावुनि जन्म ओंगळी । त्रासला चिळसला जीव अंतरीं। राहिलो निराळा म्हणनी तेथुनी। सवित्याचें मंगल किरण सेवुनी। मी अलिप्ततेचे गाणे गा तसें। गा गा रे सखया तूं ही गातसें ॥ घेऊनी वामनरूप भृग तो। येतसे लुटाया मजला धावुनी ॥ परि हृदयाचे बलिदान देउनी। जिंकिला कोंडिला केला गुंग तो॥ For Private and Personal Use Only

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