Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी सूर्याजीसे मैंने डोर काट डालनेका तत्त्वज्ञान सीखा। मुझे उसका बहुत बार उपयोग हुआ है। संगीत और चित्रकलाका क्या उपयोग है ? संगीतसे भगवान्का नाम गाया जाय। चित्रकलासे भगवानका रूप खींचा जाय। नाम-रूप मिथ्या होनेपर भी भगवान का नाम-रूप मिथ्या नहीं कहना चाहिए। ४४ नीतिमें क्या आता है ?-नीतिमें क्या नहीं आता, यही सवाल है। 'निजों तरी जागे' (सोते समय भी हम जागते हैं।) यही अन्तिम नीतिसूत्र है। काम खतम होनेके बादका काम याने आनन्द । 'नीति जयांचिये जीए। लीलेमांजी।। (नीति जिनकी लीलामें जीती है।) मैं जब गीताका अर्थ थोड़ा-बहुत समझने लगा, उसके थोड़े ही दिन बाद मेरी मांका देहांत होगया। अर्थात् मुझे गीताकी गोदमें डालकर वह चल बसी। मां गीता ! तेरे ही दूधपर अबतक मैं पला हूं और आगे भी तेरा ही आधार है। ४७ प्रवृत्ति रजोगुण । अप्रवृत्ति तमोगुण। इधर खाई, उधर कुआं। For Private and Personal Use Only

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