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विचारपोथी
सूर्याजीसे मैंने डोर काट डालनेका तत्त्वज्ञान सीखा। मुझे उसका बहुत बार उपयोग हुआ है।
संगीत और चित्रकलाका क्या उपयोग है ? संगीतसे भगवान्का नाम गाया जाय। चित्रकलासे भगवानका रूप खींचा जाय।
नाम-रूप मिथ्या होनेपर भी भगवान का नाम-रूप मिथ्या नहीं कहना चाहिए।
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नीतिमें क्या आता है ?-नीतिमें क्या नहीं आता, यही सवाल है। 'निजों तरी जागे' (सोते समय भी हम जागते हैं।) यही अन्तिम नीतिसूत्र है।
काम खतम होनेके बादका काम याने आनन्द ।
'नीति जयांचिये जीए। लीलेमांजी।। (नीति जिनकी लीलामें जीती है।)
मैं जब गीताका अर्थ थोड़ा-बहुत समझने लगा, उसके थोड़े ही दिन बाद मेरी मांका देहांत होगया। अर्थात् मुझे गीताकी गोदमें डालकर वह चल बसी। मां गीता ! तेरे ही दूधपर अबतक मैं पला हूं और आगे भी तेरा ही आधार है।
४७ प्रवृत्ति रजोगुण । अप्रवृत्ति तमोगुण। इधर खाई, उधर कुआं।
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