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विचारपोथी पर डालनेवाले गुलाम या लुटेरे लोग 'राष्ट्र' संज्ञाके पात्र नहीं हैं।
७०
'देशे काले च पात्रे च' का न्याय खुद अपनेको भी लागू है ।
अज्ञानमें से ज्ञान उत्पन्न नहीं हो सकता।
दुर्बलका 'बलिदान' नहीं; बलिदान बलवान का
७३
'बलिदान' कहते ही बलिका स्मरण हो पाता है ।बलिदान माने आत्मसमर्पण।
७४ कर्म करूंगा तो फल भी लूंगा, यह रजोगुण ।
फल छोडूंगा, तो कर्म भी छोड़ गा, यह तमोगुण । दोनों एक ही हैं।
७५ 'यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः ।' क्योंकि, लोगोंको सेवाकी ज़रूरत रहती है, सो उन्हें भक्त मिल जाता है ; भक्तको सेव्यकी जरूरत रहती है, सो उसे लोग मिल जाते
हैं।
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रातको कुत्ते भौंकने लगे, उससे नींद खराब हुई, इस कारण भले आदमीको 'दुःख' हुआ। पर जब दूसरे दिन सवेरे मालूम हुना कि उस भौंकनेसे आये हुए चोर भाग गए तब 'सुख' हुआ।
७७ ब्रह्मचर्य पारमार्थिक साधन है। ब्रह्मचर्याश्रम परमार्थानुकूल सामाजिक संस्था है।
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