Book Title: Vichar Pothi Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan Publisher: Sasta Sahitya Mandal View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी १७ ___ मां, तूने मुझे जो दिया वह किसीने भी नहीं दिया। पर तू मरनेके पश्चात् जो दे रही है, वह तूने भी जीते-जी नहीं दिया। आत्माके अमरत्वका इतना ही प्रमाण मेरे लिए बस है। हमारी मांके कुछ वचन : "विन्या, ज्यादा मत मांग । याद रख, थोड़ेमें गोड़ी (मिठास) और अधिकमें लबाड़ी (लबारो)।" "मनष्य अगर उत्तम गृहस्थाश्रम करे तो मां-बापका उद्धार होता है। पर उत्तम ब्रह्मचर्यका पालन करे तो बयालीस पीढ़ियोंका उद्धार हो जाता है।" __ "पेटभर अन्न और तनभर वस्त्र-इससे अधिककी आवश्यकता नहीं।" "देवादिकोंकी या साधु-सन्तोंकी कथाओंके सिवा दूसरी कोई कथाएं न सुननी चाहिए।" ____ "देश-सेवा की तो उसमें भगवान्की भक्ति आ ही जाती है। फिर भी थोड़ा भजन चाहिए।" ___ "अन्त्यज कोई नीच नहीं हैं। क्या भगवान् 'विठ्या महार' नहीं बना था !" इतिहास याने अनादिकालसे अबतकका सारा जीवन । पुराण याने अनादिकालसे अबतक टिका हुआ अनुभवका अमर अंश। २० अनुभव तर्कातीत है। श्रद्धा अनुभव के आधारपर रहनेवाली, पर उससे भी परेकी वस्तु है। For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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