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विचारपोथी
१७
___ मां, तूने मुझे जो दिया वह किसीने भी नहीं दिया। पर तू मरनेके पश्चात् जो दे रही है, वह तूने भी जीते-जी नहीं दिया। आत्माके अमरत्वका इतना ही प्रमाण मेरे लिए बस है।
हमारी मांके कुछ वचन :
"विन्या, ज्यादा मत मांग । याद रख, थोड़ेमें गोड़ी (मिठास) और अधिकमें लबाड़ी (लबारो)।"
"मनष्य अगर उत्तम गृहस्थाश्रम करे तो मां-बापका उद्धार होता है। पर उत्तम ब्रह्मचर्यका पालन करे तो बयालीस पीढ़ियोंका उद्धार हो जाता है।" __ "पेटभर अन्न और तनभर वस्त्र-इससे अधिककी आवश्यकता नहीं।"
"देवादिकोंकी या साधु-सन्तोंकी कथाओंके सिवा दूसरी कोई कथाएं न सुननी चाहिए।" ____ "देश-सेवा की तो उसमें भगवान्की भक्ति आ ही जाती है। फिर भी थोड़ा भजन चाहिए।" ___ "अन्त्यज कोई नीच नहीं हैं। क्या भगवान् 'विठ्या महार' नहीं बना था !"
इतिहास याने अनादिकालसे अबतकका सारा जीवन । पुराण याने अनादिकालसे अबतक टिका हुआ अनुभवका अमर अंश।
२० अनुभव तर्कातीत है। श्रद्धा अनुभव के आधारपर रहनेवाली, पर उससे भी परेकी वस्तु है।
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