Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 2
Author(s): G C Chaudhary
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
View full book text
________________
सत्यनिष्ठ डॉ. हीरालालजी
__दलसुख मालवणिया डॉ हीरालालजी से निकट परिचय हुआ प्राकृत विद्यापीठ, वैशाली की स्थापना के बाद । ज्यों-ज्यों परिचय बढ़ता गया आदर में वृद्धि ही होती रही और उनका अन्तिम दर्शन हुआ प्रज्ञापना सूत्र के द्वितीय भाग के उद्घाटन के समय जब वे बंबई पधारे थे। कई वर्षों से हृदय-रोग से पीड़ित थे किन्तु जीवन में संयम के कारण वे जीवित थे। अन्त में वही हुआ जो सबके लिए एक न एक दिन होता है। डॉ० हीरालालजी ने अपने जीवनकाल में जो कुछ किया है उसके कारण उनकी स्मति चिरकाल तक बनी रहेगी इसमें संदेह नहीं है। किन्तु जैन समाज के विद्वानों के लिए तो वे एक चुनौती छोड़ गये हैं। वह है सत्यनिष्ठा की-सांप्रदायिकता से ऊपर उठकर सत्यप्रिय बनने की। 'संयत' पद की चर्चा में हमने देखा है कि वे एक बड़े आचार्य और कई पंडितों के विरोध के बावजूद अपने मन्तव्य पर दृढ़ रहे और संयत पद को कायम रखा। इससे उन्होंने जैन समाज की बड़ी भारी सेवा की है। दिगंबर समाज आज कुछ माने किन्तु मूल मन्तव्य उस समाज में भी क्या था-उसकी रक्षा के लिए उन्होंने जो कदम उठाया था वह उनकी सत्यनिष्ठा का एक उदाहरण है और वह सदैव विद्वानों के लिए प्रेरणा देता रहेगा।
वे संस्कृत के प्रोफेसर थे किन्तु अपभ्रंश भाषा के कई ग्रन्थों का उद्धार करके अपभ्रंश के इने-गिने विद्वानों में इन्होंने अपनी प्रतिष्ठा जमाई थी। यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें कई विद्वान् योगदान देना चाहते हैं किन्तु मूल अपभ्रंश ग्रन्थों के संपादन में रुचि नहीं रखते। उन सभी के लिए उन्होंने अपभ्रंश की विद्वत्ता का मापदंड उपस्थित किया है।
षटखंडागम का प्रकाशन उन्होंने डॉ० उपाध्ये के साथ कई पंडितों के सहकार से किया-यह तो उनकी कीर्ति को बढ़ाता रहेगा-आनेवाले कई वर्षों तक। यह कार्य आसान नहीं था। किन्तु निःस्वार्थभाव से साहित्य-सेवा किस प्रकार से हो सकती है-उसका यह जीता जागता उदाहरण है। प्रकाशन के लिए केवल पूरे पंद्रह हजार भी उन्हें मिले नहीं थे; फिर भी षखंडागम का कार्य उन्होंने जो पूरा किया वह वेही कर सकते थे। दिगम्बर समाज में जो आगमिक साहित्य की कमी महसूस हो रही थी उसकी पूर्ति उन्होंने यह महाभारत कार्य कर के कर दी है।
प्राकृत विद्यापीठ की स्थापना के लिए तो उन्होंने अपनी जान लड़ा दी ऐसा कहें तो अनुचित नहीं होगा। जिस विषय में किसी को रस नहीं, उस विषय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org