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सन्तकवि रइधू और उनका साहित्य
अर्थात् ' हे कविवर, शयनासन, हाथी, घोड़े, ध्वजा, छत्र, चमर, सुन्दर रानियों, रथ, सेना, सोना, धन-धान्य, भवन, सम्पत्ति, कोष, नगर, देश, ग्राम, बन्धुबान्धव, सुन्दर - सन्तान, पुत्र, भाई आदि सभी मुझे उपलब्ध है । सौभाग्य से किसी भी प्रकार की भौतिक सामग्री की मुझे कमी नहीं है । किन्तु इतना सब होने पर भी मुझे एक वस्तु का प्रभाव सदैव खटकता रहता है और वह यह कि मेरे पास काव्यरूपी एक भी सुन्दरमणि नहीं है । इसके बिना मेरा सारा ऐश्वर्य फीका - फीका लगता है । हे काव्यरूपी रत्नों के रत्नाकर, तुम तो मेरे स्नेही वालमित्र हो, तुम्ही हमारे सच्चे पुण्य- सहायक हो, मेरे मन की इच्छा परिपूर्ण करनेवाले हो, इस नगर में बहुत से विद्वज्जन निवास करते हैं, किन्तु मुझे आप जैसा कोई भी अन्य सुकवि नहीं दिखता । अतः हे कविश्रेष्ठ, मैं अपने हृदय की ग्रन्थि खोलकर सच सच ग्रपने मन की बात आप से कहता हूँ कि आप एक काव्य की रचना करके मुझपर अपनी महती कृपा कीजिए ।" कमल सिंह के उक्त निवेदन पर कवि ने 'सम्मत गुणणिहाणकव्व' नामक एक अध्यात्म एवं दर्शन के ग्रन्थ की रचना की ।
उक्त महाकवि का अन्तर्वाह्य साक्ष्यों के आधार पर वि० सं० १४४०१५३० सिद्ध होता है । पिछले १५ वर्षों के निरन्तर प्रयासों से उक्त कवि के २१ ग्रन्थ इन पंक्तियों के लेखक को भारत के विविध शास्त्र भण्डारों से उपलब्ध अथवा ज्ञात हो सके हैं, उनकी वर्गीकृत सूची इस प्रकार है :
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चरित- साहित्य :
(१) मेहेसर वरिउ ( मेघेश्वरचरित), (२) बलह्द्दचरिउ ( बलभद्रचरित), (३) जिमंधरचरिउ ( जीमन्धरचरित), (४) सिरि सिरिवालचरिउ ( श्री श्रीपाल चरित), (५) जसहर चरिउ ( यशोधरचरित), (६) सम्मइजिणचरिउ ( सन्मतिजिनचरित), (७) हरिवंशचरिउ (हरिवंशचरित), (८) सुक्कोसलचरिउ ( सुकौशलचरित), ( ९ ) धण्णकुमारचरिउ (धन्यकुमारचरित), (१०) संतिणाहचरिउ ( शान्तिनाथचरित), (११) पासणाहचरिउ (पार्श्वचरित) ।
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आचार, दर्शन एवं सिद्धान्त साहित्य :
( १२ ) पुण्णसवकहा ( पुण्याश्रवकथा ), (१३) सावयचरिउ ( श्रावकचरित), (१४) सम्मतगुणणिहाणकव्व ( सम्यकत्वगुणनिधानकाव्य ), (१५) श्रप्प संवोह - कथ्य ( आत्मसम्बोधकाव्य), (१६) अणथमिउकहा (अनस्तमितकथा), (१७) सिद्धंतत्थसार (सिद्धान्तार्थसार), (१८) वित्तसार ( वृतसार ) ।
अध्यात्म साहित्य :
(१९) बाराभावना, ( २० ) सोलह कारण जयमाला, (२१) दशलक्षणधर्म जय
माला ।
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