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236 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2 "प्राकृत देर जेस, उवर आइने नीव संधिरीगल इन पाली डण्ड इन, एण्ड उबर दी बेटोमिंग इण्डिश्चिन स्प्राखन' नामक निबन्ध लिखा', जो पालि-प्राकृत भाषाओं पर प्रकाश डालता है। जैनकथा साहित्य के आधार पर प्राकृत का सर्वप्रथम अध्ययन जैकोबी ने ही किया है। इस सम्बन्ध में उनका 'उबर डेस प्राकृत इन' डेर इत्सेलंग लिटरेचर डेर जैन' नामक निबन्ध महत्त्वपूर्ण है।
___ इसी समय पीटर्सन का 'वैदिक संस्कृत एण्ड प्राकृत',२ एफ० इ० पार्जिटर का 'चूलिका 'पैशाचिक' प्राकृत', आर० श्मिदित का 'एलीमेण्टर बुक डेर शौरसेनी', बाल्टर शुबिंग का 'प्राकृत डिचटुंग एण्ड प्राकृत अमेनीक,४ एल० डी० बर्नेट का 'ए प्ल्यूरल फार्म इन द प्राकत आफ खोतान'५ आदि गवेषणात्मक कार्य प्राकृत भाषाओं के अध्ययन के सम्बन्ध में प्रकाश में आये ।
इस शताब्दी के चतुर्थ एवं पंचम दशक में पाश्चात्य विद्वानों ने प्राकृत भाषा के क्षेत्र में जो कार्य किया है उसमें ल्युइगा नित्ति डोलची का अध्ययन विशेष महत्त्व का है। उन्होंने न केवल प्राकृत के विभिन्न वैयाकरणों के मतों का अध्ययन किया है, अपितु अभीतक प्राकृत भाषा पर हुए पिशेल आदि के ग्रन्थों की सम्यग् समीक्षा भी की है। उनका प्रसिद्ध ग्रन्थ 'लेस ग्रेमेरियन्स प्राकत्स' (प्राकत के व्याकरणकार) है, जो पेरिस से सन् १६३८ ई० में प्रकाशित हया है। नित्ति डोलची का दूसरा ग्रन्थ 'डु प्राकृतकल्पतरु डेस् रामशर्मन विब्बलियोथिक डि ले आल हेट्स इट्यूइस' है। इन्होंने प्राकत-अपभ्रंश भाषा से सम्बन्धित समस्याओं पर शोध-निवन्ध भी लिखे हैं। 'प्राकत ग्रेमेरिअन्स टर्डिस एट डायलेक्ट्स डआदि।
- इसी समय टी० बरो का 'द लेंग्वेज प्राफ द खरोष्ट्री-डाकुमेंटस फ्राम चाइनीज तुर्किस्तान', नामक निबन्ध १६३७ में केम्ब्रिज से प्रकाशित हुआ। प्राकृत मुहावरों के सम्बन्ध में विल्तोरे पिसानी ने 'एन अननोटिस्ड प्राकृत इडियम', नामक लेख प्रकाशित किया। मागधी एवं अर्धमागधी के स्वरूप का १. केस्टगबे डेलब्रुक स्मृतिग्रन्थ, स्ट्रासबर्ग, १९१२-१३, पे० २११-२२१, 1912-13,
p. 211-221. २. Journal of the American oriental society, vol. 32, 1912. ३. Journal of the Royal Asiatic Society, New Series, London, 1912,
p. 711-713. ४. F. Stegarve Jacobi, Bonn (Germany) 1926, p. 89-97. ५. Journal of the Royal Asiatic Society, New Series, London, 1927,
p. 848 and 1928, p. 399. ६. See-प्राकृत भाषाओं का व्याकरण-अनु० डा० हेमचन्द्र जोशी, आमुख, पृ० ३-७;
प्रका० -बिहार-राष्ट्रभाषा-परिषद, पटना, सन् १९५८. ___Bulletin of School of Oriental and African Studies, No. 8. p. 68]
683, London, 1936.
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