Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 2
Author(s): G C Chaudhary
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
View full book text
________________
280
VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2
छः गणतंत्रों का राज्यसंघ था । काशिका के अनुसार ये छ: राज्य कौडोपरथ, दंडक, कोष्ठक, जालमानि ब्रह्मगुप्त और जानकि थे। संभवतः उन्होंने अपनी मुद्रा भी चलायी थी, जिस पर 'त्रकत ( त्रिगर्त) जनपदस्य' त्रिगर्त देश की मुद्रा ऐसा लेख पाया जाता है । डा० अल्टेकर का अनुमान है कि यह गणतंत्र संघ जलन्धर दोस्राव में स्थित था और बाद में उसका ( कुणिंद) नामान्तर हुआ । कुणिदों की मुद्रायें बड़ी संख्या में मिली हैं । कुणिंद राज्य दूसरी सदी ईसवी तक वर्तमान था और कुशाण साम्राज्य को नष्ट करने में इससे दौधेयों को बहुत सहायता मिली । आधुनिक आगरा-जयपुर प्रदेशों में लगभग २०० ई० से ४०० ई० तक अर्जुनायन गणतंत्र कायम था । इसकी मुद्रायें भी मिली हैं । इन पर किसी राजा का नाम नहीं है, केवल इतना ही लिखा है 'अर्जुनायनानाम् जयः । मुद्राओं का समय अनुमानतः १०० ई० पूर्व है, पर गणतंत्र इससे कहीं पुराना रहा होगा, क्योंकि उसका शासकवर्ग अपनी उत्पत्ति महाभारत के प्रख्यात योद्धा 'अर्जुन' से मानता था । इनका यौधेयों से जो अपने को धर्मराज युधिष्ठिर के वंशज मानते थे, बहुत सहयोग रहा करता था ।
यौधेय गणतंत्र बहुत बड़ा राज्य था । इसकी मुद्राओं के प्राप्तिस्थानों से ज्ञात होता है कि इसका विस्तार पूर्व में सहारणपुर से पश्चिम में भावलपुर तक और उत्तर-पश्चिम में लुधियाना से दक्षिण पूर्व में दिल्ली तक रहा होगा । यह तीन गणतंत्रों का राज्यसंघ था। इनमें से एक की राजधानी पञ्जाव में रोहतक थी। दूसरे के शासन में उत्तर- पांचाल का उपजाऊ 'बहुधान्यक' प्रदेश था और तीसरे की सीमा में संभवतः राजपूताना का उत्तरी भूभाग था ।
सिकन्दर के वृत्त - लेखकों ने लिखा है कि व्यास के उस पार एक उपजाऊ देश था, जिसमें वीर लोग रहते थे और जिसके शासन की बागडोर उच्चवर्ग के हाथ थी । यह गणतंत्र निस्सन्देह यौधेय गणतंत्र ही था और उस समय उसका प्रभाव सर्वविदित था । इनके पराक्रम और शक्ति का वर्णन सुनकर ही सिकन्दर के सैनिक दहल गये और उन्होंने आगे बढ़ने से अस्वीकार कर दिया था । प्रथम शताब्दी ईसवी में कुशाण सम्राट कनिष्क ने इनका पराभव किया, किन्तु, अधिक समय तक कुशाण इन्हें अपनी मुट्ठी में नहीं रख सके । रुद्रदामा के शिलालेख के अनुसार 'अपने पराक्रम के लिए समस्त क्षत्रियों में अग्रगण्य' इन अभिमानी वीरों ने शीघ्र शिर उठाया और २२५ ई० तक न केवल उन्होंने खोयी हुई स्वतंत्रता ही प्राप्त कर ली, वरन् कुशाण साम्राज्य को ऐसा धक्का दिया, जिससे वह पुनः संभल नहीं सका । ३५० ई० तक यह गणतन्त्र विद्यमान था, किन्तु, इसके बाद का इतिहास ज्ञात नहीं ।
१. एलन, कॉइन्स ऑफ ऐंसिएण्ट इंडिया, चित्रफलक ३९, १०, इन मुद्राओं के लेखों से गणतंत्र का अस्तित्व सिद्ध होता है ।
२. मजुमदार और अल्टेकर - दि एज ऑफ वकाटकाज एण्ड गुप्ताज, अध्याय २. ३. मजुमदार और अल्टेकर --- दि एज ऑफ वाकाटकाज एण्ड गुप्ताज पृ० २८-३२ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org