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प्राचीन भारत में गणतंत्र का आदर्श
283 के साथ ही अन्य भी अनेक प्रकार के सामाजिक, व्यावहारिक और धार्मिक प्रश्न भी विचारार्थ आते रहते थे। कुशीनारा के मल्लों ने अपने संथागार में ही एकत्र होकर भगवान बुद्ध के अन्त्येष्टिसंस्कार के विषय पर विचार किया था। इन्हीं मल्लों और लिच्छवियों ने भगवान् बुद्ध से अपने नवनिर्मित संथागारों में उपदेश देकर उसके उद्घाटन करने की प्रार्थना अनेक समय पर की थी।
भारत में ६ठी शताब्दी ई० पूर्व से ४ थी शताब्दी तक, लगभग एक हजार वर्षों तक, गणराज्यों के उत्थान-पतन का इतिहास मिलता है। उनको अन्तिम झलक गुप्त-साम्राज्य के उदयकाल तक दिखायी पड़ती है। गुप्तों के साम्राज्यवाद ने उन सबों को समाप्त कर डाला। भारत के प्रधान गणराज्यों में स्थान रखनेवाले लिच्छवियों के ही दौहित्र समुद्रगुप्त ने उनका नामोनिशान मिटा दिया और मालव, अर्जुनायन, यौधेय, आभीर आदि गणों को प्रणाम, आगमन तथा प्राज्ञाकरण के लिए बाध्य किया। उन्होंने स्वयं अपने को 'महाराज' कहना शुरू कर दिया और विक्रमादित्य उपाधिधारो चन्द्रगुप्त ने उन सवों को अपने विशाल साम्राज्य का शासित प्रदेश बना लिया। भारतीय गणराज्यों के भाग्यचक्र की यह विडम्बना ही थी कि उन्हीं के सम्बन्धियों ने उनपर सबसे अधिक कठोर प्रहार किये। वे प्रहार करने वाले थे-वैदेहीपुत्र अजातशत्रु, मौरियराजकुमार चन्द्रगुप्त मौर्य और लिच्छवि-दौहित्र समुद्रगुप्त ।
___अन्ततः यहाँ यह तथ्य स्वीकार्य अवश्य है कि आजकल प्रजातंत्र और लोकतंत्र का जो अर्थ है, उस अर्थ में वे प्राचीन भारत के गणराज्य प्रजातंत्र नहीं कहे जा सकते, किन्तु, उनकी वह व्यवस्था राजतन्त्र से नितान्तभिन्न अवश्य थी।
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