________________
VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2
अत: सविकल्पक ज्ञान प्रमाण है क्योंकि वह संवादक है, अर्थ की परिच्छित्ति ( ज्ञान करने) में साधकतम है, अनिश्चित अर्थ का निश्चय करनेवाला है, प्रमाता उसी की अपेक्षा करता है । इसके विपरीत निर्विकल्पक ज्ञान में उपर्युक्त विशेषतायें नहीं होने से वह सन्निकर्षादि की तरह प्रमाण नहीं है । "
298
१.
Jain Education International
यथा संशयादिहेतोर्ज्ञानस्य ज्ञानत्वे सत्यपि -- । न्या० कु० च० प्र० परि० पृ० ५२ ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org