Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 2
Author(s): G C Chaudhary
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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प्राचीन भारत में गणतंत्र का आदर्श
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मध्य पञ्जाब के मद्रों का भी एक गणराज्य था । मद्र लोग संभवतया कठों से भिन्न न थे, जिनके प्रजासत्तात्मक राज्य का उल्लेख सिकन्दर के वृत्त - लेखकों ने किया है । इनकी राजधानी स्यालकोट थी । इनका गणराज्य ४थी शताब्दी ई० तक वर्त्तमान था ।
मालव और क्षुद्रक उन गणतंत्रों में अग्रगण्य हैं, जिन्होंने सिकन्दर के अभियान का प्रबलतम प्रतिरोध किया था । इस समय मालव चेनाव और राबी के बीचवाले तथा उससे कुछ दक्षिण के प्रदेश में बसे थे और क्षुद्रक उनके दक्षिणी पड़ोसी थे । ' इन दोनों राज्यों ने जो राज्य संघ स्थापित किया, वह कई शताब्दियों तक कायम रहा । महाभारत में अनेक बार मालव और क्षुद्रकों का उल्लेख साथ-साथ पाया जाता है । आगे चल कर क्षुद्रक पूर्ण रूप से मालवों में मिल गये । १५० ई० के करीव शकों ने इन्हें पराजित किया, पर २२५ ई० तक वे फिर स्वतंत्र हो गये । इनकी तांबे की मुद्राएँ भी बहुतायत से मिलती हैं क्षुद्रकों के पड़ोस में अम्वष्ट गणतंत्र भी था । यूनानी इतिहासकार कर्टियस ने स्पष्टतः उनके राज्य को प्रजातंत्र कहा है । बौद्धों के त्रिपिटक और भाष्यों से पता चलता है कि वर्तमान उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और उत्तरी बिहार के प्रदेशों में भी अनेक गणतंत्र विद्यमान थे । इनमें भग्ग, बुली, कोलिय और मोरिय राज्य तो आधुनिक तहसीलों से बड़े न थे । शाक्य, मल्ल, लिच्छवी और विदेह राज्य कुछ बड़े थे, पर सब मिलाकर भी इनका विस्तार लम्बाई में २०० और चौड़ाई में १०० मील से अधिक न था । पच्छिम में गोरखपुर से पूर्व में दरभंगा तक और उत्तर में हिमालय से दक्षिण में गंगा तक इन गणराज्यों का विस्तार था । इन चारों में शाक्यों का राज्य सबसे छोटा था । यह गोरखपुर जिले में स्थित था । इनके पूर्व में मल्ल राज्य था । इसका विस्तार पटना जिले तक था । इसके वाद लिच्छवी और विदेह राज्य थे ।
शाक्य राज्य की शासन व्यवस्था के सम्बन्ध में कुछ सन्देह है । बौद्धग्रन्थों के कुछ उल्लेखों से जान पड़ता है कि यहाँ नृपतंत्र था । बुद्ध के समय में अद्दीय वहाँ का राजा था । उसने जब संघ में प्रवेश करने का निश्चय किया तो अपने राज्य के उत्तराधिकारी की व्यवस्था करने के लिए एक सप्ताह का समय माँगा । जैसा हम जानते हैं कि उत्तरी-पूर्वी भारत के प्रायः सभी गणराज्यों में शासनमण्डल के सदस्यों को राजा की पदवी देने की प्रथा थी । भद्दिय भी संभवतया इसी अर्थ में राजा हुआ होगा । जातकों में शाक्योंके संथागार का वर्णन है, जहाँ एकत्र होकर वे संधि-विग्रह आदि महत्त्वपूर्ण विषयों पर विचार किया करते
१. मैककिन्डल - इन्ह्वेजन ऑफ अलेकजेण्डर पृ० १३८ ।
२.
अर्थशास्त्र, एकादशभाग ।
३.
लिच्छविक वृज्जिक मल्लक मद्रक कुक्कुर कुरुपांचालादयो राजन्यशब्दोपजीविनः,
अ० एकादश ।
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