Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 2
Author(s): G C Chaudhary
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 255
________________ 246 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2 · बात ध्यान देने योग्य है कि आचरण का परिष्कार सरलतम रीति से कुछ निषे धात्मक नियमों के द्वारा ही किया जा सकता है । हिंसा, असत्य, चोरी, कुशील और परिग्रह ये सभी सामाजिक पाप हैं, इनके परित्याग से ही समाज का हित संभव है । इन व्रतों पर जैनशास्त्रों में बहुत अधिक जोर दिया गया है और इनका अत्यन्त सूक्ष्म एवं सुविस्तृत विवेचन किया गया है । धर्माचार्यों ने प्रथम तो यह अनुभव किया कि सब के लिए सब अवस्थाओं में इन व्रतों का एक साथ पूर्ण पालन संभव नहीं है । अतएव जैनधर्म में इन व्रतों के दो स्तर स्थापित किये गये - अणु और महत् अर्थात् एक देश और सर्व देश । पश्चात् काल में आवश्यकता होने पर इनके अतिचार भी निर्धारित हुए, जिससे सच्चे अर्थ में इन व्रतों का पालन हो सके। इस प्रकार व्रतों के इन दो विभागों द्वारा जैनधर्म में गृहस्थ और साधु आचार के बीच समानता और भेद बताने वाली स्पष्ट रेखा खींच दी गयी है । प्रायः इसी तरह की मिलती-जुलती व्यवस्था हम हिन्दू-धर्म में भी पाते हैं, जो मनुष्य जीवन में यथाक्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास धारण की चतुर्विध प्राश्रम व्यवस्था से प्रमाणित है । वस्तुतः व्यक्ति ब्रह्मचर्याश्रम से जिस जीवन का प्रारम्भ करता है, उसकी परिसमाप्ति संन्यासाश्रम में ही जाकर होती है, जब साधक उस गृह तथा परिवार को भी, जो उसकी बाल्य और युवा दोनों ही अवस्थाओं में आश्रय एवं आकर्षण के स्थान रहे हैं, बन्धन का कारण समझता हुआ छोड़ कर चल पड़ता है और पुनः उनकी ओर लौटकर देखता तक नहीं । यह मानव-जीवन का कितना महान् परिवर्तन एवं कैसी कठोर साधना है ? यह साधु आचार विषयक साहित्य वहुत विशाल है । आज इस वैज्ञानिक युग में भी साधु आचार सम्बन्धी ग्रन्थों से आपूरित ऐसे ग्रन्थागार और ग्रन्थभण्डार हैं जहाँ अभी तक विषयानुसार पुस्तक सूची तैयार करना दुष्कर कार्य समझा जाता है । इस साहित्य की विशालता का प्रधान कारण यह कहा जा सकता है कि प्राचीन काल से ही धर्म एवं अध्यात्म चर्चा के प्रधान केन्द्र इस भारत में प्राय: जितने भी धार्मिक ग्रन्थ लिखे गये, उनमें साधु आचार से अछूता शायद ही कोई ग्रन्थ बचा हो । इस प्रकार भारतीय परम्परा में जो भी साहित्य धार्मिक क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं, उन्हें प्रायः हम साधु आचार विषयक भी मान सकते हैं, और ये ग्रन्थ अपने अन्तर्गत सैकड़ों पन्थ और सम्प्रदायों को समेट कर रखे हुए हैं । किन्तु यहाँ यह ज्ञातव्य है कि भारतीय परम्परा के अन्तर्गत साधुआचार विषयक ग्रन्थ हिन्दू और जैन सम्प्रदायों में प्रायः अधिक हैं, जिन सबों का सामान्य परिचय भी प्रस्तुत करना एक स्वतन्त्र महानिबन्ध का विषय है । अतः प्रस्तुत निबन्ध के अन्तर्गत केवल आठ प्रमुख ग्रन्थों पर विचार किया गया है और वह भी संक्षेप में । सामान्यतः हिन्दू परम्परानुमोदित साधु आचारों के साक्ष्यस्वरूप ग्रन्थों में मनुस्मृति, याज्ञवलक्यस्मृति, भागवतपुराण और विवेकचूडामणि तथा जैन परम्परानुमोदित ग्रन्थों में मूलाचार, आचारांगसूत्र, उत्तराध्ययन और कल्पसूत्र के नाम उल्लेखनीय हैं । यहाँ हम इन्हीं ग्रन्थों से प्राप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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