Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 2
Author(s): G C Chaudhary
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 252
________________ विदेशी विद्वानों का जनविद्या को योगदान 243 प्राकृत भाषाओं का विशेष अध्ययन बेलजियम में किया जा रहा है । वहाँ पर डा० जे० डेल्यू 'जैनिज्म तथा प्राकृत' पर, डा० एल० डी० राय 'क्लासिकल संस्कृत एण्ड प्राकृत' पर, प्रो० डा० श्रार० फोहले 'क्लासिकल संस्कृत प्राकृत एण्ड इंडियन रिलीजन' पर तथा प्रो० डा० ए० श्चार्पे 'ऐंशियण्ट इण्डियन लेंग्वेजेज एण्ड लिटरेचर - वैदिक, क्लासिकल संस्कृत एण्ड प्राकृत' पर अध्ययनअनुसन्धान कर रहे हैं । ' इसी प्रकार पेनीसिलवानिया युनिवर्सिटी में प्रो नार्मन ब्राउन के निर्देशन में प्राकृत तथा जैन साहित्य में शोधकार्य चल रहा है । इटली में प्रो० डा० वितरो विसानी एवं प्रो० प्रसार बोटो ( Occar Botto) जैनविद्या के अध्ययन में संलग्न हैं। आस्ट्रेलिया में प्रो० ई० फ्राउनर वेना (E. Frauwalner Viena) जैनविद्या के विद्वान् हैं। पेरिस में प्रो० डा० लोस रेनु (Louis Renou), रोम में डा० टुची (Tucci ) तथा ज्योरगिआ (Georgia) में डा० वाल्टर वार्ड ( walter ward) भारतीय विद्या के अध्ययन के साथ-साथ जैनिज्म पर भी शोध कार्य में संलग्न हैं । जापान में जैनविद्या का अध्ययन बौद्धधर्म के साथ चीनी एवं तिब्बतन स्रोतों के आधार पर प्रारम्भ हुआ । इसके प्रवर्तक थे प्रो० जे० सुजुकी (J. Suzuki) जिन्होंने 'जैन सेक्रेड बुक्स' के नाम से ( Jainakyoseiten) लगभग २५० पृष्ठ की पुस्तक लिखी । वह १६२० ई० में 'वर्ल्डस सेक्रेड बुक्स' ग्रन्थमाला के अन्तर्गत प्रकाशित हुई । ३ सुजुकी ने 'तत्त्वार्थाधिगमसूत्र', 'योगशास्त्र' एवं 'कल्पसूत्र का जापानी अनुवाद भी अपनी भूमिकाओं के साथ प्रकाशित किया । जैन विद्या पर कार्य करनेवाले दूसरे जापानी विद्वान् तुहुकु ( Tohuku) विश्वविद्यालय में भारतीयविद्या के अध्यक्ष डा० ई० कनकुरा ( E. Kanakura ) हैं । इन्होंने सन् १६३६ में प्रकाशित 'हिस्ट्री आफ स्प्रिचुअल सिविलाइजेशन आफ एन्स्येण्ट इण्डिया' के नवें अध्याय में जैनधर्म के सिद्धान्तों की विवेचना की है । तथा 'द स्टडी आफ ज़ेनिज्म' कृति १९४० में आपके द्वारा प्रकाश में आयो । १६४४ ई० में तत्त्वार्थाधिगमसूत्र एवं 'न्यायावतार' का जापानी अनुवाद भी आपने किया है । " बीसवीं शताब्दी के छठे एवं सातवें दशक में भी जैनविद्या पर महत्त्वपूर्ण कार्य जापान में हुआ है । तैशो ( Taisho ) विश्वविद्यालय के प्रो० एस० मत्सुनामी (S, Matsunami ) ने वौद्धधर्म और जैनधर्म का तुलनात्मक अध्ययन १. डा० शास्त्री, वही, पृ० ६२. २. ज्ञानपीठ पत्रिका, १९६८, पृ० १८३. ३. Atsushi Uno - Jain Studies in Japan', Jain Journal Vol. VIII, No. 2., 1973, p. 75. Ibid, p. 77. The Voice of Ahimsa, Vol. 6. 3-4, 1956, p. 136-37. ४. 2. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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