Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 2
Author(s): G C Chaudhary
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 250
________________ ३१. ३२. ३३. ३४. ३५. ३६. ३७. ३८. ३६. ४०. ४१. ४२. ४३. ४४. ४५. ४६. ४७. ४८. ४६. ५०. विदेशी विद्वानों का जनविद्या को योगदान दिगम्बर जैन ग्रन्थों का परिचय कुमारपाल प्रतिबोध दसवेयालियसुत्त हरिवंशपुराण एवं महापुराण सूर्यप्रज्ञप्ति जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति प्राकृत कल्पतरु न्यायावतारसूत्र महानिशीथ मल्ली की कथा चौपन्नमहापुरिसचरियं महानिशीथ आयारदशाओ प्रवचनसार उत्तराध्ययन ओघनिर्युक्ति मूलाचार' भगवतीमूलाराधना अनुयोगद्वारसूत्र वाल्टर आल्सडोर्फ लेमन Jain Education International आल्सडोर्फ कोल डब्लू किफेल नित्तिडोलची कनकुरा हम्म गुस्तेव कलास सुप्रिंग सुप्रिंग ए० ऊनो आल्सडोर्फ ए. मेटे आल्सडोर्फ प्रात्सडोर्फ टी०हनाकी १९२३ १९२८ १९३२ १९३५ १९३७ १९३७ १९३९ 241 विभिन्न विषय जैन साहित्य के इन प्रमुख ग्रन्थों के अतिरिक्त जैन दर्शन की अन्य विधाओं पर भी पाश्चात्य विद्वानोंने लिखा है । उन्होंने जैन ग्रन्थों का सम्पादन ही नहीं किया, अपितु उन के फ्रेंच एवं जर्मन भाषाओं में अनुवाद भी किये हैं । लायमन ने पादलिप्तसूरि की 'तरंगवती कथा' का सुन्दर अनुवाद दाइ नोन (Die Nonne) The Nun के नाम से प्रकाशित किया है । इस दृष्टि से चार्लट क्रोसे का इंडियन नावल (Indische Novellen ) महत्त्वपूर्ण कार्य है । २ जैनाचार्यों की जीवनी की दृष्टि से हर्मन जेकोबी का 'अवर डास लेवन डेस जैन मोन्स हेमचन्द्र' नामक ग्रन्थ महत्त्वपूर्ण है । For Private & Personal Use Only १९४४ १९४८ १९५२ १२५५ १९६३ १९६६ १९६६ १९५४-६६ १९६८ १९६८ १९६८ १९७० जैन इतिहास और पुरातत्त्व के महत्त्वपूर्ण अवशेषों के सम्बन्ध में भी पाश्चात्य विद्वानों में अध्ययन प्रस्तुत किया है। डी० मेनट ने गिरनार के जैन मंदिरों पर लिखा है । जोरल डुबरिल ने दक्षिण भारत के पुरातत्त्व पर विचार १. Bharatiya jnanpith Patrika, Oct. 1968, p. 183. २. The Contribution of French and German Scholars to Jain Studies,Acharya Bhikshu Smitigranth, p. 106. १६ www.jainelibrary.org

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