________________
अनंगकुमार कथा
(भ० महावीर का एक पूर्व-भव) साकेत नगरी में मदन नाम का राजा था। उसके अनंगकुमार नाम का पुत्र था। उसी नगरी में एक ऐसी घटना घटी कि राजकुमार अनंगकुमार को मोहग्रस्त पागल स्त्री को प्रतिबुद्ध करना पड़ा। वहाँ के श्रेष्ठी-पुत्र प्रियंकर ने अपने पड़ोसी की कन्या सुन्दरी से शादी की थी। दोनों में इतना गहरा प्रेम था कि वे एक दूसरे के बिना विल्कुल नहीं रह सकते थे। प्रियंकर की अकस्मात् मृत्यु हो गयी। सुन्दरी इस दुःखद घटना से पागल हो गयी और वह अपने पति के शव को लेकर फिरने लगी। अनेक तरह से समझाने पर भी वह उस शव को नहीं छोड़ती थी और लोगों से हैरान होकर वह श्मशान भूमि पर रहने लगी। सुन्दरी के पिता की प्रार्थना से अनंगकुमार ने अपनी युक्ति से सुन्दरी को स्वस्थ करने का भार अपने ऊपर ले लिया। अनंगकुमार भी एक औरत के शव को लेकर श्मशान भूमि पर रहने लगा। दोनों में मित्रता हो गयी और भाई-बहन की तरह रहने लगे। अपने-अपने कार्य से अलग होते समय एक दूसरे को अपना शव सौंपकर वे वाहर जाते थे। एक दिन अनंगकुमार ने सुन्दरी को बतलाया कि तुम्हारा पति तो चुपके से मेरी पत्नी मायादेवी के साथ प्रेम की बातें करता है। दूसरे अन्य अवसर पाने पर जव सुन्दरी वाहर गयो हुई थी तब अनंगकुमार ने दानों शवों को एक कुएं में फेंक दिया और सुन्दरी को बताया कि तुम्हारा लंपट पति मेरी स्त्री को लेकर भाग गया है।
वह स्वयं रोने पीटने लगा और स्त्री के वियोग में दुःखी होने लगा । सुन्दरी को भी काफी दुःख हुआ। अनंगकुमार ने पूछा कि अब क्या किया जाय तब सुन्दरी ने कहा कि तुम ही वताओ क्या किया जाय ? तब अनंगकुमार ने उसे राग और मोह के दुष्परिणामों को समझाया। सुन्दरी प्रतिबुद्ध हुई और सम्यक्त्व प्राप्त किया।
यहाँ से मरकर सुन्दरी मानभट के रूप में जन्मी। फिर एक देव के रूप में और तत्पश्चात् कुवलयचन्द्र (कुवलयमाला कथा का नायक) के रूप में जन्म लिया। वहाँ से फिर एक देव के रूप में और तत्पश्चात् भगवान् महावीर के समय में काकन्दी नगरी में राजा काञ्चनरथ और रानी इन्दीवरा के पुत्र मणिरथ कुमार के रूप में जन्म लिया। अनंगकुमार स्वयं भ० महावीर के रूप में जन्मा था। अनंगकुमार के भव और भ० महावीर के भव के बीच में कितने और कौन-कौन से अन्य भव भ० महावीर ने ग्रहण किये इस बारे में कुछ भी नहीं बताया गया है। सिर्फ ऐसी कथा आती है कि भगवान् महावीर ने काकंदी नगरी में मणिरथकुमार को प्रतिबुद्ध किया था।
उस समय भ० महावीर ने मणिरथकुमार को उसके पूर्व-भव की प्रियंकर और सुन्दरी की कथा सुनायी थी और बतलाया था कि वह स्वयं उस समय अनंगकुमार थे। (कुवलयमाला-परिच्छेद, ३३६-३४३).
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org