Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 2
Author(s): G C Chaudhary
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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तीर्थकर महावीर का प्रतिमा निरूपण
225 भुजाओं में नकुलक और फल चित्रित होगा; ' जब कि सिंह पर आसीन चतुर्भज सिद्धायिका की भुजाओं में पुस्तक, अभयमुद्रा, फल और वोणा के चित्रण का विधान है। लेखक द्वारा विभिन्न स्थलों पर जिन मूर्तियों के समग्र अध्ययन से यह स्पष्ट है कि जैन शिल्प में लोकप्रियता की दृष्टि से ऋषभनाथ और पार्श्वनाथ के बाद ही महावीर की प्रतिष्ठा हुई। महावीर मूर्तियों में यक्ष-यक्षी युगल का नियमित चित्रण ९वीं शती के बाद ही लोकप्रिय हुआ था । यह भी ज्ञातव्य है कि ऋषभ एवं नेमिनाथ के समान महावीर के यक्ष-यक्षी युगल का विशिष्ट पारंपरिक स्वरूप कभी भी शिल्प में पूर्णतः निर्धारित नहीं हो सका था ।
कुषाणयुगीन (प्रथम शती से तीसरी शती) प्रारम्भिक महावीर मूर्तियाँ मथुरा के कंकालीटीले से प्राप्त हुई हैं। इन मूर्तियों की पहचान मात्र पीठिका पर उत्कीर्ण लेखों के आधार पर सम्भव हो सकी है, जिनमें तीर्थंकर का नाम 'वर्धमान' दिया है। लगभग सात उदाहरण राजकीय संग्रहालय, लखनऊ में संकलित हैं। लगभग सभी में धर्मचक्र से युक्त सिंहासन पर महावीर को ध्यानमुद्रा में आसीन प्रदर्शित किया गया है ।
कुषाण काल में मथुरा में ऋषभ एवं महावीर के जीवन की कुछ विशिष्ट घटनाओं को भी उत्कीणित किया गया था। महावीर से संबंधित पट्ट (लखनऊ संग्रहालयः जे ६२६) पर उनके गर्भापहरण का दृश्य उत्कीर्ण है। इस पट्ट पर इन्द्र के प्रधान सेनापति हरिणैगमेषिन या नैगमेषिन् (अजमुख) के समीप ही वालक महावीर (निर्वस्त्र) और उसकी माता को खड़ा आमूर्तित किया गया है । समीप ही नृत्यांगनाएं चित्रित हैं। केवल श्वेतांवर जैन परम्परा में ही उल्लेख है कि इन्द्र ने नेगमेषिन को महावीर के भ्र ण को ब्राह्मणी देवानन्दा के गर्म से छत्रियाणी त्रिशला के गर्भ में परिवर्तित करने की आज्ञा दी। कल्पसूत्र (तीसरी शती) में सर्वप्रथम शक्रेन्द्र के आदेश पर हरिणैगमेषी द्वारा महावीर के भ्र ण का देवानन्दा के गर्भ से संहरण कर त्रिशला के गर्भ में संस्थापित करने का उल्लेख प्राप्त होता है (कल्पसूत्र-सू० २०-२८) ।
__ एक गुप्तयुगीन (छठी शती) मूर्ति भारत कलाभवन, वाराणसी (नं० १६१), में संग्रहीत है। वाराणसी से प्राप्त इस मनोज्ञ प्रतिमा में देवता को ऊँची पीठिका पर विश्वपद्म पर ध्यानमुद्रा में आसीन चित्रित किया गया है । (१) तत्तीर्थजन्मा मातंगो यक्ष: करिरथोऽसितः । बीजपूरं भुमे वामे दक्षिणे नकुलं दधत् ॥
त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र १०.५.११
(हेमचन्द्रकृत, १२वीं शती) (२) सिद्धायिका तथोत्पन्ना सिंहयाना हरिच्छावः । __ समातुलिंगवल्लक्यौ वामबाहू च विभ्रती ॥१२॥ पुस्तकाभयदौ चोभौ दधाना दक्षिणीभुजौ।
त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र १०.५.१२-१३
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