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तीर्थकर महावीर का प्रतिमा निरूपण में दाहिने कोने पर क्षेत्रपाल की नग्न आकृति खड़ी है। क्षेत्रपाल की दाहिनी भुजा में गदा प्रदर्शित है और वाम भुजा में शृंखला स्थित है, जिससे बंधा वाहन श्वान भी समीप ही उत्कोणित है। क्षेत्रपाल की आकृति के ऊपर द्विभज गोमुख यक्ष की आसीन आकृति निरूपित है, जिसकी भुजाओं में मुद्रा एवं फल स्थित है। गोमुख के ऊपर तीन सफणों से युक्त पद्मावती यक्षी आसीन है, जिसकी दाहिनी भुजा की सामग्री अस्पष्ट है, और वाम में मातुलिंग प्रदर्शित है । महावीर मूर्ति के बायें कोने पर गरुड़वाहनी चक्रेश्वरी की द्विभुज पासीन मूर्ति आमूर्तित है, जिसकी भुजाओं में अभय एवं चक्र प्रदर्शित है। चक्रेश्वरी के ऊपर ही द्विभुज अंविका की आकृति खड़ी है। अंविका की दाहिनी भुजा में अाम्रलंवि है और वाम भुजा भग्न है। अंधिका की दाहिनी भुजा के नीचे ही उसका दूसरा पुत्र उत्कीर्ण है। मूर्ति में मूलनायक का मस्तक, पार्श्ववर्ती चामरधारी सेवक, ऊपरी परिकर खण्डित है। मिहारान अनुपस्थित है। इस मर्ति की विशिष्टता पारंपारिक यक्ष-यक्षो युगल के स्थान पर गोमुखयक्ष, एवं चक्रेश्वरी, अंबिका, पद्मावतो यक्षियों और क्षेत्रपाल के चित्रण हैं।
१२ वीं शती की एक श्वेतांवर भूर्ति गुजरात के बनासकांठा जिले में स्थित कुमारिया के नेमिनाथ मन्दिर के गूढ़मण्डप के मण्डोवर पर स्थित है। संवत् १२३३ (?) (११८६) के लेख से उक्त ध्यानस्थ मूर्ति में अलंकृत प्रासन के समक्ष लांछन सिंह उत्कीर्ण है। साथ ही पादपीठ के लेख में भी संभवतः महावीर का नाम अभिलिखित है। सिंहासन के दोनों कोनों पर यक्ष-यक्षी युगल रूप में सर्वानुभूति (कुबेर) एवं अम्बिका निरूपित है। बायें पार्श्व को यक्षो अम्बिका को भुजाओं में ग्राम्रलंबि एवं वातक प्रदर्शित है और शोर्षभाग में आम्रफल की टहनियां उत्कीर्ण हैं। दाहिने कोने को चतुर्भुज कुबेर को ऊपरी दो भुजाओं में लम्बा सर्प उत्कीर्ण है, और निचली दाहिनी एवं वाम भुजाओं में क्रमश: वरद और फल है। पार्श्ववर्ती चामरधरों के ऊपर उत्कीर्ण दो संक्षिप्त जिन आकृतियों में से एक के मस्तक पर पाँच सर्पफणों का घटाटोप (सुपार्श्वनाथ) प्रदर्शित है। सिंहासन के मध्य को चतुर्भुज शान्ति देवी (अभय, सनाल पद्म, सनालपद्म, फल) की आकृति के नीचे दो मृगों से वेष्टित धर्मचक्र उत्कीर्ण है। शीर्षभाग में त्रिछत्र के ऊपर उत्कीर्ण कलश के मोप स्थित हाथ जोड़े आकृति के दोनों ओर दो आकाशीय संगीतज्ञों को उत्कीर्णित किया गया है। परिकर में शुण्ड में क्लश धारण किए दो गज प्राकृतियाँ उत्कोर्ण हैं, जिनके पीठ पर चार प्राकृतियाँ अवस्थित हैं।
यह उल्लेखनीय है कि गुजरात एवं राजस्थान के विभिन्न श्वेताम्बर स्थलों से प्राप्त महावीर मूर्तियों (एवं अन्य सभी पूर्ववर्ती जिनों की मूर्तियों में) उत्तर भारत के अन्य स्थलों से प्राप्त महावीर मर्तियों के विपरीत सिंहासन के मध्य में चतुर्भुज शांतिदेवी (अभय या वरद, पद्म, पद्भ या पुस्तक, एवं बीजपूरक या क्लश), दो गजों, धर्मचक्र के दोनों ओर दो मृगों को मी प्रदर्शित किया गया
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