Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 2
Author(s): G C Chaudhary
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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जैन नाटककार हस्तिमल्ल का समय
डॉ० कछेदीलाल जैन
संस्कृत के अन्य रूपककारों की भाँति हस्तिमल्ल का समय तथा अन्य जीवनवृत्त उपलब्ध नहीं है इसलिए इसका निर्णय उनके उपलब्ध साहित्य तथा अन्य सामग्री के आधार पर करना है । इस सामग्री को सामान्यतया दो वर्गों में विभाजित कर सकते हैं :
(१) अन्तःसाक्ष्य - अर्थात् हस्तिमल्ल द्वारा रचित ग्रन्थों की पुष्पिकाएँ एवं प्रशस्तियाँ |
(२) वाह्य साक्ष्य - अर्थात् परवर्ती साहित्यकारों द्वारा हस्तिमल्ल के उल्लेख तथा अन्य साक्ष्य |
हस्तिमल्ल के समय को अधिकतम निचली सीमा ध्वीं शताब्दी में ले जानेवाले श्रीरामकृष्णमाचार्यर हैं ।' इस सम्बन्ध में उन्होंने कोई हेतु नहीं दिया है । इस सीमा का आधार यह हो सकता है कि हस्तिमल्ल ने अपने नाटक का स्रोत जिनसेन के आदिपुराण से ग्रहण किया है । जिनसेन राष्ट्रकूट राजा अमोघ - वर्ष के संरक्षण में थे । अमोघवर्ष का समय ८१५०७८ है । जिनसेन के समय से यह बात सिद्ध होती है कि हस्तिमल्ल का समय इससे पूर्व नहीं जा सकता है ।
हस्तिमल्ल के समय की उपरली सीमा १४ वीं शताब्दी है । इस सीमा का आधार यह है कि अय्यपार्य ने अपना जिनेन्द्र कल्याणाभ्युदय शक सम्वत् १२४१ (वि० सं० १३७६ ) में पूर्ण किया था । उसमें हस्तिमल्ल का उल्लेख है । इसी आधार पर स्व० मुख्तार सा० ने हस्तिमल्ल को चौदहवीं शताब्दी का विद्वान् माना है । स्व० नाथूराम प्रेमी का तर्क यह है कि मुख्तार Hastimalla probably lived in the 9th century A.D. (History of classical Sanskrit literature, Page 641-668). २. दक्षिण भारत में जैनधर्म, पृष्ट ९०
1.
३.
वीराचार्यसुपूज्यपादजिनसेनाचार्यसंभाषितो
४.
यः पूर्व : गुणभद्रसूरिवसुनन्दीन्द्रादि नन्यूर्जितः । यश्चाशाधर हस्तिमल्लकथितो यश्चैकसन्धिस्ततः तेभ्यः स्वाहृत्यसारमध्यरचितः स्याज्जैनपूजाक्रमः ॥ ...अय्ययाय्यंविदुषा निनिर्मिताकृतवरप्रसादतः
शाकाब्दे विधुवार्धिनेत्रहिमगो (१२४१) सिद्धार्थसम्वत्सरे ।
- जिनेन्द्र कल्याणाभ्युदय की प्रशस्ति, जैन ग्रन्थ- प्रशस्तिसंग्रह, भाग १ से ।
जैन साहित्य के इतिहास पर विशद प्रकाश, पृष्ठ १५९.
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