Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 2
Author(s): G C Chaudhary
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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सिद्ध साहित्य का मूल स्रोत
151 होगा।' इतना ही नहीं, शीतल वायु, हरिचंदन, हार, मणि या चंद्रकिरण से किसी का परिताप शांत नहीं हो सकता। परिताप का शमन तो शीतल शील से ही संभव है । स्वर्गारोहण के लिए शोल के समान कोई दूसरा सोपान है ही कहाँ ?३
एक बार बुद्ध की धर्मसभा में बैठे एक ब्राह्मण ने बुद्ध से पूछा कि भगवान कभी बाहुका नदी में स्नान करने जाते हैं या नहीं ? बुद्ध ने जब इस नदी और इसमें स्नान करने के परिणाम के संबंध में उस ब्राह्मण से जिज्ञासा की तो उसने वताया कि इस नदी में स्नान करने से पाप नष्ट हो जाते हैं और यह मोक्षदायिनी है। लोग इसके पवित्र जल में स्नान कर अपने पापों को धो डालते हैं। यह सुनकर भगवान ने कहा कि वाहुका, अधिकक्का, गया, सुन्दरिका, सरस्वती, प्रयाग और वाहुमतो नाम की अनेक नदियाँ हैं जिन्हें पपित्र तीर्थस्थल माना जाता है। किन्तु मूर्ख और पापी ही इनमें स्नान करते हैं क्योंकि ऐसा करने से कुछ होने को नहीं है। दूसरों को दुःख देनेवाला और पाप करनेवाला कभी इन नदियों के जल से पवित्र नहीं हो सकता। इसके लिए हृदय की पवित्रता अत्यावश्यक हैं। ठीक ऐसा ही उदाहरण 'थेरी गाथा" में भिक्षुणी पुणिका और ब्राह्मण के बीच हुए वार्तालाप में मिलता है। श्रावस्ती की पूर्णिका सेठ अनाथ पिडिक को दासी-पुत्री थी। भिक्षुणी होने के पश्चात् कड़ाके की सर्दी में एक ब्राह्मण को प्रातःकाल ठंडे जल से स्नान करते हुए देखकर उसने उससे कहा कि"मैं पनिहारिन थी। सदा पानी भरना ही मेरा काम था। स्वामिनियों के दंड के भय से, उनके क्रोध भरे कुवाच्यों से पीड़ित होकर मुझे कड़ी सर्दी में भी सदा पानी में उतरना पड़ता था पर आप किसके भय से इस कड़ी सर्दी में स्नान कर रहे हैं ?" इस पर उस ब्राह्मण ने उत्तर दिया कि जल से मनुष्य के पाप धुल जाते हैं इस कारण में स्नान कर अपने को पवित्र कर रहा हूँ। पूर्णिका को यह सुनकर हँसी आ गई और उसने उस ब्राह्मण से कहा कि-हे ब्राह्मण ! किस मूर्ख ने आप को यह उपदेश दिया है ? यदि पानी से मनुष्य के पाप धल जाते और वह पवित्र हो जाता तो मेढक, सर्प आदि सभी जीव-जंतु पवित्र होकर स्वर्ग चले जाते । भेंड़, मछली, शिकारी, चोर और हत्यारे-जितने भी पाप करनेवाले हैं सभी जल में स्नान कर पवित्र हो जाते। और फिर पानी में स्नान करने से यदि पूर्वजन्म के पाप धुल सकते हैं तो उससे पुण्य भी तो धुल सकता है। फिर भला बताओ तो सही कि शेष क्या रहेगा ? जल में स्नान करने से कभी पाप नहीं धुल सकते। यदि कोई अपने पापों से छुटकारा पाना चाहता है तो उसे सम्यक् आचार और चारित्र को अपनाना चाहिए। इतना
१. विसुद्धिमग्ग-धर्मानंद कोसाम्बी-भाग-१-~-पृ०-६. २. वही-, ,,-पृ०-७. ३. वहो--, ,-पृ०-७. ४. थेरी गाथा-सं०-भिक्षु जगदीश काश्यप-पृ०-४३६-३७.
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