________________
सिद्ध साहित्य का मूल स्रोत
157 सरह, काह्नपा और शबरपाद आदि ने शबर बालिका तथा डोंबी, चांडाली आदि महामुद्राओं के प्रति जो प्रणय-निवेदन किया है वही इस बात को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि सिद्ध साहित्य ने अपने पूर्व के युग और साहित्य से प्रेरणा ग्रहण की है।
इस प्रकार हमने देखा कि सिद्ध साहित्य के पीछे एक लम्बी परम्परा काम कर रही है । वस्तुतः पृष्ठभूमि को यह परम्परा उपनिषद् और उनसे भी पूर्व वेदों तक पहुँच जाती है। हाँ, इस क्षेत्र में प्रारण्यक और उपनिषदों का विशेष हाथ है। यह तो कहा ही जा चुका है कि उपनिषद् की आत्मा ही बौद्ध वेश में सिद्ध साहित्य में पाई जाती है। वज्रयान बौद्ध धर्म का परिणत रूप है और बौद्ध धर्म का मूल उपनिषदों में निहित है। वौद्ध धर्म में उपनिषदों के सिद्धान्तों का ही चरम विकास एक नवीन सामाजिक व्यवस्था के अाधार के रूप में पाया जाता है।'
1. The upanishads are to my mind the germs of Bhudhism, while
Budhism is in many respects the doctrine of the upanishads carried out to its last consequences, and, what is important, employed as the foundation of a new social system.
-सैक्रेड बुक्स ऑफ दि इस्ट सिरीज-भाग-१५, भूमिका-पृ० ५२.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org