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140 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2 सोना है ? तनमन रहँट जैसा पिया मिलन की आशा में डोलता रहता है। प्रिय का पथ देखते-देखते आँख थक गई फिर भी उस बेरहमने सुधि न ली। विरहिणी की पीड़ा जब जोर मारती है तब वह अपने प्रिय को पुकार उठती है।' मैथिल कोकिल विद्यापति ने भी तो विरह की अवस्था में अपने उन नयनों की ओर संकेत किया है जो प्रिय का पथ निहारते-निहारते फेया (फेनिल) गई हैं मगर हरि अब भी नहीं आये और उधर प्रेम दिवानी मीरा की आँखें प्रिय के दर्शन के बिना दुखने लगी हैं। इस कारण वह उस 'दुःखमेटन' को पुकारती है।३ यहाँ आँखों के दुखने में सहज स्वाभाविकता है। बहुत देर तक किसी की बाट जोहने पर ऐसा होता ही है। कबीर पिया मिलन की आशा में कब से खड़े हैं। आत्मा रूपी प्रेयसो के पाँव ठहरते नहीं हैं और वह रह-रहकर गिर पड़ती है। बालम के बिना पगली नायिका की 'देह' दुखी है इसलिए वह अपने प्रियतम को पुकारती है । विरहिणी अपने प्रिय के नाम की माला जपती रहती है। नाम रटते-रटते उसकी जीभ में छाला पड़ गया है और प्रिय का पथ निहारते-निहारते उसके आँखों में झाई पड़ गई है। प्रियतम के विना प्रेयसी रह ही कैसे सकती है ? भला कहीं पानी के बिना मछली रहती है।
जैनाचार्यों से अधिकांश वज्रयानी सिद्धों ने जिस परम्परा को ग्रहण किया उसका अनुसरण और अनुकरण एक ओर जहाँ ज्ञानाश्रयी शाखा के संत कवि कबीर, दादू, रैदास आदि ने किया वहाँ प्रेममार्गी शाखा के प्रमुख सूफी संत कवि जायसी ने भी उसका सफल निर्वाह किया है। सूफी संत खंडकाव्य और महाकाव्य के प्रेमी थे। भारतीय कथानक को फारसी ढंग पर वे काव्यबद्ध करते थे। हिन्दू जीवन की लोककथाओं को जायसी आदि संतों ने फारसी मसनवी को शैली में रूपकात्मक ढंग से लिखा है। यही कारण है कि वे लौकिक प्रेम कहानियाँ १. तलफै बिन बालम मोर जिया। दिन नहिं चैन रात नहिं निदिया तलफ-तलफ के भोर किया ॥
xx नैन थकित भए पंथ न सूझै साईं बेदरदी सुध न लिया। कहत कबीर सुनो भाई साधो हरो पीर ढु:ख जोर किया ।
-वही-१०९-पृ०-२१३ २. सौ गीत विद्यापति के-७८--पृ० .-९१ ३. मीर बाई की पदावली-१८३-१०-३९२ ४. कबीरवचनावली-११०-पृ०-२१३ ५. वही –१०० ---पृ०-२१०
अखियाँ तो झाँइ परी पंथ निहार निहार । जीहड़िया छाला परा नाम पुकार पुकार ॥
कबोरवचनावली-१५३, पृ० १०७. ७. वही, १५२, पृ० १०७.
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