Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 2
Author(s): G C Chaudhary
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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सिद्ध साहित्य का मूल स्रोत
139 नायिका का पार्ट अदा करते हैं जो अपने प्रियतम के साथ समागम के लिए विकल हो गई है तथा जो उससे 'फूलन सेज' पर चलने का आतुर आग्रह करती है।' ऐसी 'वलमासी' नायिका अपने पिया की 'ऊची अटरिया' देखने चलती है जिस में 'जरद की किलरिया' तथा 'नामकी की डोरिया' लगी है। उसमें चाँद-सूर्य का दिया जलता है। यह ऐसी अटारी है जिसमें पंचेन्द्रियाँ चौधरी का काम करती हैं और जिसमें दस दरवाजे हैं । २ समान्य जीवन में स्त्रियाँ गौने के दिन की बाट बड़ी बेसब्री से जोहती हैं । अन्त में जब गौने का दिन आता है तब वह खुशी के मारे फूली नहीं समाती है। प्रात्मा भी बड़ी वेताबी से परमात्मा से मिलने की प्रतीक्षा करती है । गौना का दिन आया है और कबीर 'हुलास' से भर गए हैं। यहाँ 'हुलास' में जो बेतकल्लुफी है वह 'उल्लास' में नहीं मिल सकती। प्रेयसी के जीवन में आखिर वह क्षण आ ही गया जब वह अपने प्रियतम से मिलेगी। किन्तु उसकी डोली को उस तालाब से होकर गुजरना है जिसमें पाँच भीट और दस दरवाजे हैं। पाँचो सखियाँ बैरिन हो गई हैं। उसके चंदन की डोली में चार कहार लगे हैं । कबीर लोगों को आगाह करते हुए कहते हैं कि इस संसार में जो 'नरम-गरम' सौदा उन्हें करना है वह कर लें क्योंकि आगे फिर मौका नहीं मिलेगा। और जव कठिन प्रतीक्षा के बाद पिया से उसकी प्रेयसी मिल जाती है तो मस्त होकर पुकार उठती है-'ये अखियाँ अलसानी, पिया हो सेज चलो' (क०व०-१७३ -पृ०-२३४) । 'वलमासी' नायिका की आँखों का अलसाना सहज स्वाभाविक है। वह उस पतंग की ओर इशारा करती है जो खंभे से लग कर झूल रही है तथा फूलों की वह 'सेज' अपने पिया को दिखाती है जो उसके विना कुम्हला रही है। मगर साथ ही 'ननद जिठानी' (माया) को भी नहीं भूलती जो सतत जागरुक है। मायके में तो नायिका को चार दिन खेलना है। फिर तो ससुराल से बुलावा आयेगा ही। इसलिए कबीर का परामर्श यही है कि 'साईं मिलन' के लिए 'जतन' करना चाहिए। उसे पिया के उस महल में जाना होगा जहाँ फूलों को सेज लगी है। उस महल में लगे ताले को खोलने की कुजी कबीर ने निर्भय हो कर बता दी।
किन्तु मनुष्य के जीवन में सुख के साथ दुःख और मिलन के साथ विछोह भी हपा है। अतः आत्मा रूपी प्रेयसी के जीवन में वह घड़ी भी पाती है जब वह परमात्मा रूपी प्रियतम से बिछुड़ जाती है और तब चकवी की तरह दाढ़ मारकर रो उठतो है। विरहिणी नायिका को न रात में चैन है और न दिन में। वह तड़प-तड़प कर रात बिताती है। भला अकेली सेज पर सोना कोई
१. कबीरवचनावली- --- १७३- पृ०-२३४ २. वही-१६८-पृ०-२३२ ३. वही-१७५ --पृ० -२३४ ४. वही-१७६ --पृ--२३५ ५. कबीरवचनावली ---१७८---पृ० -२३५
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