Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 2
Author(s): G C Chaudhary
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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86 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO.2 कर देना ही सम्यक् निग्रह है। अतः जो वादी समीचीन युक्ति के बल से अपने पक्ष को सभ्यों के चित्त में अंकित कर देता है उसी की विजय माननी चाहिये और जो चुप हो जाता है या यद्वा तद्वा बोलता है उसे पराजित मानना चाहिये। अकलंक देव ने यही कहा है :
प्रकृताशेषतत्त्वार्थप्रकाशपटुवादिनः । विव्र वाणोऽव वाणो वा विपरीतो निगृह्यते ॥
-न्यायविनिश्चय २।२०६.. इस तरह वाद में जो अन्यायमूलक हिंसा होती थी उसे भी दूर करने का प्रयत्न जैन नैयायिकों ने किया। अतः जैनन्याय के चिन्तन में भी अहिंसा का दर्शन होता है।
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