________________
अनूठा तपस्वी - श्रमण संस्कृति में ऐसे अनेक आचार्य हुए हैं जिन्होंने बहुत तपश्चरण किये ऋद्धियाँ प्राप्त की, अनेकों महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे, किन्तु स्वयं के विषय में उन्होंने कुछ नहीं लिखा। यही कारण है कि अनेक प्राचीन आचार्यों के विषय में हमें अधिक जानकारी नहीं मिलती । तपोधन मुनिकुंजर आचार्य श्री आदिसागरजी अंकलीकर जी ने भी बहुत तपश्चरण किया किन्तु उसे प्रचारित नहीं होने दिया । उनके तृतीय पट्टाचार्य तपस्वी सम्राट आचार्य श्री सन्मतिसागरजी भी उन्हीं के मार्ग पर चलने वाले आचार्य थे। उनके साथ अनेक चमत्कारिक प्रसंग जुड़े हैं। वे वर्ष में तीन बार अष्ट दिवसीय और एक बार दस ग्यारह दिवसीय निर्जल उपवास करते थे। पिछले लगभग 35 वर्षों से उन्होंने अन्न का दाना भी नहीं छुआ था तथा लगभग इतने ही वर्षों से उन्होंने नमक, शक्कर, घी, तेल, दही, आदि का त्याग कर रखा था। एक आम आदमी की तरह गुरुवर सोते नहीं थे, रात्रि 8 से 11 बजे तक योगनिद्रा में रहते थे। 24 घंटे में मात्र 3 या 4 घंटे ही विश्राम लेते थे । सल्लेखना से पूर्व शास्त्रोक्त विधि से सब त्याग कर र्निविकल्प होकर समाधिमरण किया ।
आचार्यश्री स्वयं अपने बारे में कभी कुछ बताते नहीं थे । तथा स्वयं का गुणानुवाद भी होने नहीं देते थे, किन्तु इनके भक्तों का, शिष्यों का कर्त्तव्य है कि वे अपने गुरु का गुणानुवाद करें, जिससे भिज्ञ होकर श्रावक सद्मार्ग में लग सकें । इसका प्रथम प्रयास उनके द्वारा दीक्षित और आचार्य पद पर संस्कारित आचार्य श्री सुनीलसागरजी महाराज ने अनूठा तपस्वी नाम की कृति को लिखकर किया है। उन्होंने 1997 से वर्तमान समय (समाधि) तक के संस्मरण तो प्रायः प्रत्यक्ष देखे एवं अनुभव किये, किन्तु 1997 से पूर्व के महत्त्वपूर्ण संस्मरण संघस्थ आर्यिका सुबुद्धिमती एवं ब्रह्मचारिणी मैनाबाई से प्राप्त किये। इस कृति में आचार्यश्री के व्रत एवं उपाधियों के बारे में, उनके द्वारा दीक्षित शिष्य शिष्याओं का, विभिन्न स्थानों पर तप के माहात्म्य से हुए चमत्कारों का, आचार्य श्री द्वारा प्रदत आचार्य पदों का, विहार एवं चातुर्मास के दौरान होने वाली विविध प्रेरणात्मक घटनाओं का उल्लेख, उनके द्वारा करायी गयी समाधियों का तथा उनके सान्निध्य में आयोजित पंचकल्याणक एवं वेदी प्रतिष्ठाओं का सुन्दर एवं यथार्थपरक शैली में उल्लेख किया गया है।
आचार्यश्री आदिसागरजी (अंकलीकर) का जीवन चरित्र 'विश्व का सूर्य' आचार्य श्री महावीरकीर्ति जी महाराज का जीवन चरित्र 'दूसरा महावीर', कालजयी कविताएँ, पथिक, वयणसारो आदि भी महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं।
T
- डॉ. महेन्द्र कुमार जैन 'मनुज'
उन्नीस