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ही आधुनिक शब्दावली में वैज्ञानिक रीति से समझाया गया है। यह कृति आधुनिक समाज विशेषतः युवावर्ग के लिए अत्यन्त उपयोगी है।
युवाओं के मन में उठने वाली विविध शंकाओं कुशंकाओं, प्रश्न-प्रतिप्रश्नों को वैज्ञानिक तथ्यों के आलोक में विवेचित कर आगम की मान्यताओं को पूर्वाग्रह रहित होकर पुष्ट किया है। इस कृति के कुछ प्रमुख विषय इस प्रकार हैं- अध्यात्म
और विज्ञान, कब जागें? चिन्तन का प्रभाव, योग के आठ अंग, दर्शन कैसे एवं क्यों करें? मूर्ति का वैज्ञानिक महत्त्व एवं प्रभाव, पूजन क्यों और कैसे? दीपक से ही आरती क्यों? दिगम्बर साधु की जानकारी, रात्रि भोजन क्यों नहीं? मूड क्यों बिगड़ता है? कैसा हो नजरिया? तैयारी कॉलेज की। इस कृति के विषय इतने प्रभावी एवं ज्ञानवर्धक हैं कि वर्तमान की युवा पीढ़ी को इससे धर्म की ओर उन्मुख किया जा सकता है। इसके सम्पादक डॉ. अनुपम जैन एवं डॉ. महेन्द्र कुमार जैन 'मनुज' हैं। सौ कविताएँ-आचार्य सुनीलसागरजी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं, उनकी लेखनी जहाँ संस्कृत, प्राकृत के छन्दों को निर्माण करने में अद्भुत है, वहीं हिन्दी की सरल कविताओं को लिखने में भी सिद्धहस्त है। वर्तमान समाज इस प्रकार की छोटीछोटी हिन्दी गद्य काव्य में भी विशेष रुचि रखता है। फलतः आचार्यश्री ने सौ कविताओं का संकलन प्रस्तुत कृति में किया है। उक्त कविताओं में विषयों की विविधता है। भाषा सरल सुबोध एवं सुगम है। ब्रह्मचर्य विज्ञान-आचार्यश्री सुनीलसागरजी द्वारा लिखी गयी ब्रह्मचर्य विज्ञान आचार्यश्री के गहन वैज्ञानिक चिंतन की तत्त्वपरक लाभदायक चर्चा है। प्रस्तुत कृति को पाँच भागों में विभाजित किया गया है। प्रथमतः मनुष्य की मानसिकता को बाँधते हुए, वीर्य की उत्पत्ति, संरचना, क्षमता, तेज और प्रभाव की गहन वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक और तथ्यपरक चर्चा की गयी है। उन्होंने बताया कि तेजस्विता, बुद्धिमत्ता और प्रचण्ड बलवत्ता के पीछे वीर्य की क्या भूमिका है। वीर्य जीवनशक्ति कैसे है? चढ़ती उम्र में ही अंधत्व, कमजोरी बीमारियाँ क्यों? अपंग सन्तानोत्पत्ति क्यों? आदि हृदयोद्वेलक प्रश्नों के सटीक वैज्ञानिक और तथ्यपरक उत्तर दिये हैं। दूसरे चरण में वीर्य क्षरण के कारणों के अन्तर्गत उन्होंने अत्यधिक भोजन, गरिष्ठ तथा तामसिक भोजन, विषय भोगों का चिन्तन, अश्लील साहित्य अध्ययन, अश्लील चित्र चलचित्र देखना और आंखों की फोटोग्राफी जैसे बिन्दुओं पर विमर्श किया है। पुस्तक के तीसरे चरण में जीवन सुरक्षा, ब्रह्मचर्य की परिपालना, वीर्य का संरक्षण कैसे हो? ओज-तैजस कैसे वृद्धिगंत हो? जैसे प्रश्नों के उत्तर में आचार्य श्री ने सत्संकल्प, सत्संगति, स्वाध्याय, दैनिकपुस्तिका लेखन आदि बहुत अच्छे सुझाव
सत्रह