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सूक्तिमुक्तावली
प्रतिमाओं के दर्शन पूजन से सम्बग्दर्शन का धारी देव हो जाता है मनुष्यों का तो वहां आवागमन ही नहीं है। मनुष्यों तिर्यंचों के भी वीतरागदेव के दर्शन पूजन से सम्यक्त्व का आविर्भाव (उत्पत्ति ) हो जाता है ऐसा शास्त्रों में ( सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक आदि में ) कथन है । कहा है। :
जिने भक्तिर्जिने भक्ति, र्जिने भक्तिर्दिने दिने । सम्यक्तमेव संसार बारणं मोक्षकारणम् ॥ अर्थात् जिनेन्द्र वीतराग देवकी भक्ति सम्यक्त्व की उत्पत्ति में प्रधान कारण है और सम्यक्त्व संसार का छेदक तथा मुक्तिका कारक है उससे अन्य सांसारिक संपत्ति तो सहज ही मिल जाती है।
पूजायाः प्रभावमाइ
शिखरिणी छन्दः कदाचिन्नातङ्कः कुपित इव पश्यत्यभिमुखम् विदूरे दारिद्र्य चकितमिव नश्यत्यनुदिनम् । विरक्ता कान्तेव त्यजति कुगतिः सङ्गमुदयो न मुञ्चत्यभ्यर्णं सुहृदिव जिनाच रचयतः || ११||
व्याख्या - जिनाची श्रीवीतरागस्य पूजां रचयतः कुर्वतः पुरुषस्य आतंको भयं कदाचित अभिमुखं सम्मुखं न पश्यति न विलोकयत क इव कुपित इव यथा कश्चित् कुपितो रुष्टो भवति । स यथा तस्य सम्मुखं न पश्यति । तथेत्यर्थः । पुनः दारिद्रयं दरिद्रत्वं अनुदिनं निरन्तरं तस्य दूरे नश्यति दूरे याति । किमिव चकितमित्र भयभीतमिव | पुनर्नरकादिकुगतिस्तस्य सङ्ग समीपं स्वजति मुखति