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सूक्तिमुक्ती
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कर्णों से पवित्र जैनसिद्धान्त के शास्त्रों का श्रवण करते हैं, जिसके हृदय में सर्वदा निर्मल विचार धारा प्रवाहित रहती है और जिनकी भुजाओं में सविषयी पुरुषा विद्यमान रहता है । ऊपर कहे गये यही कार्य सज्जन पुरुषों के आभूषण हैं। अन्य सोने चांदी के आभूषण तो कहने मात्र के हैं उनसे मनुष्य जन्म की शोभा नहीं है। और न उनसे आत्मा का उत्थान होता है। अतः सज्जन महा पुरुषों के उपरोक गुग उपादेय हैं, उन्हीं से आत्माओं का कल्याण हुआ है और होगा ।
शिखरिणी छन्दः भवारण्यं मुक्त्वा यदि जिगमिषुर्मुक्तिनगरौं । तदान मा कार्षी विषयविषवृक्षेषु वसतिं ॥ यतश्छायाप्येषां प्रथयति महामोद्दमचिरादयं जन्तुर्यस्मात्पदमपि न गन्तुं प्रभवति ||१८||
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व्याख्या - भो श्राद्ध | यदि चेद् भवारण्यं संसाररूपां अव मुक्त्वा त्यक्त्रा मुक्तिनगरी सिद्धिपुरीं प्रति जिगमिषुरसि गंतुकामोसि तदानीं त्वं विषयविषवृक्षेषु विषया एव विषवृक्षास्तेषु वसतिं निवासं मा कार्षी र्मा व्यषाः कुतः यस्मात् कारणात् एषां विषयविषवृक्षाणां छायापि महामोक्षं महदज्ञानं प्रथयति विस्तारयति । यस्मान्महामोद्दादयं अन्तुः प्राणो अचिराद् वेगात पदमपि गतुं एकं पारमपि चलितुं न शक्नोति किन्तु स्थावरत्वं प्राप्नोति ॥ ६८ ॥
अर्थ - हे भव्य ! यदि तू संसार रूप भयंकर वन को छोड़कर मुक्तिरूपी नगरी के प्रति गमन करने की इच्छा करता है तो इंद्रियों