Book Title: Suktimuktavali
Author(s): Somprabhacharya, Ajitsagarsuri
Publisher: Shanti Vir Digambar Jain Sansthan
View full book text
________________
१.३८
रलोक
पृष्ठ
चारित्र चितुते तनोति
जातः कल्पतरू जिनेन्द्रपूजा गुरु
१२३
१०६ ४४
तममिलषति तस्यासन्ना रति तस्याग्निर्जल मणवः ते धत्तरतरु वन्ति तोयत्यग्निरपि त्रिसंध्यं देवा! त्रिवर्ग संसाधन
दत्तस्तेन जगत्य दायादाः स्पृहयन्ति दारिद्रयन तमोक्षते
[
]
धत्ता मौनमगार धर्मध्वंस घुरी धर्मध्वस्तयो धमै जागरयस्य
10]
न देषं नादेव नवते परदूषणं

Page Navigation
1 ... 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155