________________
सूक्तिमुक्तावली व्याख्या:-भावनां शुभभावनां विना दानादि तपः स्वाध्यायाध्यनादि सर्घमनुष्ठाने कियाकरणं निष्फलं स्यात् । दानं प्रसिद्धं च अईवर्चा देवपूना च तपश्च स्वाध्यायश्च ते आपो यस्य तत् दानजिनपूजातपः सिद्धांतपठनादिक भाव विना भिक कमिव । नीरागे पुरुषे तरुणी कटाक्षितमिव युवतीकटाक्ष विक्षेपणमिव । यथा नीगगे नरे तरुणी फटाक्षा निष्फलाः । पुनः किमिव त्यागव्यतिप्रभी दानरहिते कुपणे स्वामिनि सेवाफष्ट इव यथा अदातरि स्वामिनि सेवाकष्ट नि:फलं। पुनः किमिव अश्मनि पाषाणे अम्भोजन्मनां कमलानां उपरोपणं वपनं इव यथा पाषाणोपरिकमलथापन निःफलं। पुनः किमिव ऊषरक्षितितले कषरभूमौ विष्वग वर्षमिव यथोषरभूमौ सर्वतो मेघवर्षणं निःफलं तथा शुभभाषना पिना सर्वाक्रिया: निःफलाः ॥५॥
अर्थ--जैसे वीतरागी पुरुष के सामने युवा स्त्री के कटाक्ष निष्फल हैं, जैसे धन न देने वाले स्वामी की सेवा करना कष्टमात्र है अर्थात व्यर्थ है, जैसे पत्थर में कमलों का उगाना व्यर्थ है उसी प्रकार भनित्य अशरण आदि बारह भावनाओं के घिन्तवन बिना दान देना, अरहन्त वीतराग की पूजा करना, तप करना, स्वाध्याय करना कराना आदि सभी क्रियायें निष्फल हैं।
भावार्थ-जैसे अंक बिना विन्दी का कोई मूल्य नहीं है उसी प्रकार मैत्री, प्रमोद, कारुण्य, माध्यस्थ भावनाओं के बिना
और अनिस्य, अशरण आदि भावनाओं के भाये बिना दान, पूजा, तप, स्वाध्याय भादि अनुष्ठान निष्फळ हैं इसलिये उत्तम भावनाओं के साथ साथ ही उत्सम कियायें करना अचम फलदायक हैं।