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सूक्तिमुक्तावली
४५ स्यात् । तथा क्यालो दुष्टगजः शृगाल इव स्यात् । पुनर्विषं हालाहलं . पीयुषं अमृतं स्यात् । वियम संक्रटं स्थानं समं संपद पं स्यात् । सत्य
प्रभावादतः सत्यमेव वक्तव्यं । अत्र वसुराजा पर्वत नारददृष्टान्तः ॥ २२॥
इत्यनृतप्रक्रमः। 'अर्थ-को पुरुष सत्यवचन बोलता है उसके अग्नि जल रूप में परिणत हो जाती है. समुद्र स्थल रूप हो जाता है, शत्रु मित्र हो जाता है, देव नौकर हो जाते हैं, बन नगर, तया पर्वत महल हो जाता है, सर्प फूलों की माला हो जाता है, सिंह हिरण के समान हो जाता है, पाताल विल के तुल्य हो जाता है, शस्त्र कमल पत्र के समान हो आते हैं, भयंकर हायो स्याल ( गीदड़) समान हो जाता है, विष अमृत रूप तया विषम वस्तु सम रूप में परिणत हो जाती है। यह सस्य वचन को ही प्रभाव है । सत्य के प्रतापसे संसार की सब दुर्लभ यस्तुये सुलभता से प्राप्त होती हैं ऐसा जान कर सदा सत्य व्यवहार करना योग्य है ॥ ३२ ॥ )
अथ अदत्ताक्षनवृत्तमाह
मालिनीछन्दः तमभिलपति सिद्धिस्तं घृणीते समृद्धिस् तमभिसरति कीर्तिमश्चते तं भवार्तिः । स्पृहयति सुगतिस्तं नेक्षते दुर्गतिस्तं परिहरति विपत्तं यो न गृहात्यदत्तं ॥३३॥