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सूक्तिमुक्तावली व्याख्या-यो मानोऽङ्गभानां प्राणिना विनयजीवितं विनयगुणरूपं जीवितं मुष्णाति उच्छित्ति । कथंभूतं विनयजीवितं कृतसमस्तसमीहितार्थ संजीवनं कृतं समस्तानां समीहितानां वांछितार्थानां संजीवनं येन तत् तं जास्यादिमानविषजं जातिलाभकुत्श्चर्यबलरूपसपःश्रुतानां मानोऽहंकार एष विषं तस्मात्समुद्भवं उत्पन्न विषमं घोरं विकारं मार्दवामृतरसेन मृदुतासुधारसेन शांति उपनाम नयस्व प्रापय ।। ५२ ।। मानत्यागे बाहुबलिदृष्टान्तः
इति मानप्रक्रमः। अर्थ-जो मान प्राणियों के सम्पूर्ण वाहिछतार्थरूप तथा संजीवन औषधि स्वरूप विनय को चुरा लेता है अर्थात् मान ( अहंकार) के सद्भाव में पूज्य पुरुषों के प्रति आदर सत्कार की भावना रूप विनय गुण सर्वाथा नष्ट हो जाता है अतः उस जात्यादि पाठ प्रकार ( जातिमच, कुलमद, बलमद, ऋद्धिमद, सपमद, शरीरमद, ज्ञानमद, ऐश्वर्यमद ) के मद रूप विष से सत्पन्न हुये विषम विकार अर्थात् रोग को मार्दव धर्म (कोमल परिणाम ) रूप अमृत पान से शान्त करो । मान रूपी रोग को मार्दवामृत से शान्त करना चाहिये ।। ५२॥
अथ मायात्यागमाह--
मालिनीछन्दः १८.कुशलजननवन्ध्यां सत्यसूर्यास्तसम्ध्यां ।
कुतियुवतिमाला मोहमातंगशालाम् ।।