________________
सूक्तिमुक्तावली
3
अर्थ – चाहे तो मौन धारण करो, घर का त्याग करो, विधि विधान की दक्षता का अभ्यास करो, किसी भी गण गच्छादि में रहो, शास्त्र पठन पाठनमें कितना ही परिश्रम करो, चाहे उन तपस्या करो, परन्तु यदि कल्याण का पुंज रूप लवामंडप को न करने में तोत्र पवन के समान प्रवीण इन्द्रियों को जीतना नहीं जानते हो तो वह सब क्रियाकाण्ड भस्म में होम करने के समान व्यर्थ (निष्फल ) है ।
TWWT
भावार्थ -- यदि मन तथा इन्द्रियों को वश में नहीं किया, विपत्रों में अनर्गल प्रवृत्ति करते रहे, मक्ष्य अभक्ष्य का कोई विचार नहीं किया तो ऐसे मनुष्यों का मौन धारण, शास्त्राभ्यास, गृहश्याग, विधि विधान का पाण्डित्य, तप तपन आदि क्रियायें निष्फल हैं उनसे कुछ लाभ नहीं होता अतः इन्द्रियविजयी बन कर ही कर्तव्य कार्य करना उपादेय है ।
पुनर्विशेषमाह -
शाहू लविक्रीडित छन्दः धर्मध्वंसधुरीणमभ्रमर सावारीणमापत्प्रथालङ्कर्माणमशर्मनिर्मिति कलापारीणमेकां ततः ।
सुन्वन्निीनमनात्मनीनमनयात्यंतीनिमिष्ठेयथाकामीनं कुमथाध्वनीनमजयन्नक्षौषमक्षेमभाकू || ७२ ॥
व्याख्या - अक्षाणां इंद्रियाणां ओषं समूहं अजयन् अवशीकुन जनः अक्षेमभाकू अकल्याणभाग भवति । कर्मभूद्र अक्षीषं