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सूक्तिमुक्तावली वस्तूनि भांति : ४. भुदर्शन मोटि बंदचलि रावणकथा वाच्या इति ब्रह्म प्रक्रमः।
अर्थ-मनुष्यों के शील के प्रभाव से निश्चय ही अग्नि भी जल रूप में परिणत हो जाती है, सर्प पुष्पमाला रूप हो जाता है, बाघ हिरण के भाव को प्राप्त हो जाता है, भयंकर हस्ती घोड़े के भाव को प्राप्त हो जाता है, महान पर्वत भी छोटे पत्थर रूप हो जाता है, विष अमृत में परिणत हो जाता है, विघ्नकारक पदार्थ धत्सव रूप में परिणामने हैं, शत्रु भी मित्र सरीखा व्यवहार करने लग जाता है, समुद्र भी क्रीडा करने का तालाब रूप हो जाता है, भयंकर अटवी ( वनी ) अपने गृह रूप हो जाती है, ऐसा शील का अद्भुत माहात्म्य जान कर उसे हृढ़ता से पालन करना चाहिये, अनेक संकटों के आने पर भी सुमेरु पर्वत तुल्य अडिग रहना चाहिये इसी से मनुष्य जन्म की शोभा है ।
शीलवत के आषत कहा हैअंकस्थाने भवेच्छीलं, शून्याकारंप्रतादिकम् । अंकस्याने पुनर्नष्ठ, सन शून्यत्रतादिकम् ॥
अर्थ-शीलप्त १, २, ३, ४, ५ आदि भट्ठों के समान है, और अहिंसा, सत्य आदि व्रत ..... शून्यों के समान है। १, २. ३, ४, ५ आदि अंकों के अभाव में ...०० शून्यों का मूल्य नहीं है उसी प्रकार शीलवत पालन पूर्वक हो ब्रतों का परिपालन सफलता का सूचक है। शीलवत रहित अहिंसादि का पालन निष्फल है । ब्रह्मचर्य (शील ) का माहात्म्य देखिये