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सूक्तिमुक्तावली
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असत्य वचन वृक्षों के लिये जल के समान दुःखों का मुख्य कारण है। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि जल यद्यपि वृक्षों की वृद्धि का कारण है--जल सींचने से वृक्ष चढ़ते हैं परन्तु अधिक जलप्रवाद (जलधारा) से वृक्षों की जड़े कट जाती हैं और वृक्ष पृथ्वी पर गिर जाते हैं, उसी प्रकार असत्य भाषण से अनेक दुख संकटों के बादल सिर पर मंडराते हैं तथा जिसप्रकार धूप में छाया के सुख का अनुभव नहीं होता उसी प्रकार झूठ वचन बोलने वाले व्यक्ति को तप और संयम के सुख का अनुभव स्वप्न में भी नहीं होता अतः असत्यवचन के उपरोक्त दोष जानकर असत्य सर्वथा स्याज्य है ॥ ३० ॥
वंशरथच्छन्दः
असत्य मप्रत्ययमूलकारणम्
कुवासनास समृद्धिवारणम् ।
त्रिपमिदानं परवंचनोर्जितं
कृतापराधं कृतिभिर्विवर्जितम् ||३१||
व्याख्या - इति कारणात् कृतिभिः पंडितैः असत्यं कूटं विशेपेण वर्जितं परिहृतं यतोऽसत्यं अप्रत्ययमूलकारणं अविश्वासस्य मूलहेतुः । पुनः कुवासनायाः कुबुद्धः पापबुद्ध े सन गृहं । पुनः समृद्धिवारणं समृद्ध लक्ष्म्या वारणं निराकरणं । पुनर्विपन्निदानं विपदां कष्टानां निदानं कारणं पुनः परअंचनोर्जितं परेषां वंचने विप्रवारये ऊर्जितं बलिष्ठ । पुनः कृतापराणं कृतः अपराधः भगः यस्य तम् । अतएवासत्यवचनं न वक्तव्यं ॥ ३१ ॥