________________
सूक्तिमुक्तावली
त्रिना सर्वेपि गुणाः पूर्वोक्ता ध्यानादयः स्वार्थाय स्वल्पफलसाधनाय अलं न समर्था न किंतु निष्फला इत्यर्थः । किंवत विनाथबलवत् निर्नायक सैभ्यवत् । यथा राजारहितसेना शत्रु' जेतुं न समर्था भवति तथा गुरुसेवां विना सगँ वृथा भवति गुरोः नुष्ठानादिकं स निष्फलं । एवं ज्ञात्वा गुरोः आज्ञासहितं सर्ग कर्तव्यं | भो भव्यप्राणिन् ! एवं ज्ञात्वा मनसि विवेकमानीय गुरुसेवा कर्तव्या कुर्वतां च सतां यत्पुण्यमुत्पद्यते तत्पुण्यप्रसादादुत्तरोत्तर मांगलिक्यमाला विस्तरन्तु ॥ १६ ॥
然
-
- ध्यान करने से क्या प्रयोजन १ समस्त इन्द्रिय विषयों के त्याग से क्या ? तप करने से क्या १ मंत्री प्रमोद आदि भावनाओं से क्या १ इन्द्रियों के वश में करने से क्या लाभ १ भाप्त आगम से भी क्या साध्य | कुछ भी नहीं, किन्तु गुरु की प्रीति से संसार का उच्छेद करने वाला मात्र एक गुरु का शासन ही है अर्थात गुरु की आज्ञा बिना सम्पूर्ण गुण-स्वामी रहित सेनाकी तरह स्वार्थ (मोक्ष) साधन में समर्थ नहीं हैं। भावार्थ जैसे सेनापति के बिना सेना युद्ध काय में विजय प्राप्त नहीं कर सकती इसी प्रकार गुरु की आज्ञा बिना समस्त गुण मोक्ष साधक नहीं हो सकते।
माह -
इति गुरुप्रक्रमः ।
मथ चतुर्भिर्वृतैर्जिनमतस्य जिनो सिद्धान्तस्य च माहात्म्य