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सूक्तिमुक्तावली धैर्यादयः मूलगुणोत्तरगुणाश्च वसंति तिष्ठन्ति । एवं ज्ञात्वा मो मन्यप्राणिन् । मनसि विवेकमानीय श्रोसंघस्य पूजा भक्तिश्च प्रकर्त ध्या कुर्वतां च यत् पुण्यमुत्पद्यते तत्पुण्यप्रसादादुत्तरोत्तरमांगलिक्यमाला विस्तरन्तु ॥ २२ ॥
अर्य--जो संसार के विषय भोगों में वांछा रहित बुद्धि घाला है तथा मुक्ति पालिके लिये सनन प्रयत्नाना है. इस्लामवादि गुणों से पवित्र आत्मा होने के कारण जिसको महापुरुष तीर्थ कहते है जिस [ चतुर्विध संघ ] के समान कोई दूसरा तीर्थ नहीं कहा जा सकता [वस्तुनः तीर्थ वही है जहाँ पवित्रामा आस्म कल्याण करते हैं जिसके लिए इन्द्रादि देव नमस्कार करते हैं, जिससे [ चतुर्विघ संघ से ] संसार के जीवों का कल्याण [ उत्थान ] होता है. जिसको महिमा उत्कृष्ट है, जिसमें सब गुणों का निवास है अर्थात् जो गुणों का भरद्वार है ऐसा चार प्रकार का संघ प्रत्येक प्राणी द्वारा पूजा के योग्य है अर्थात चतुर्विध संघ की मन वचन काय से पूजा सेवा करना चाहिये इसी में प्रत्येक प्राणी का कल्याण निहित है।
इस विषय में श्री सोमदेव आचार्य की उक्ति हैकलौ काले चले चित्ते, देहे चान्नादिकीटके।। एसचित्रं यदद्यापि, जिनरूपधरः नराः ॥
इसका अर्थ यह है कि यह पंचम काल हुण्डावसर्पिणी का काल बड़ा भयंकर है प्रायः लोगों की मनोवृत्ति चंचल है-रियर नहीं है, शरीर अन्नका कीड़ा बन रहा है जिनके रात दिन एकसा है खाने पीने का रात दिन का कोई विचार नहीं है ऐसे कलिकाल